China’s intentions in Depsang are clear Amar Ujala 07 Aug 2021

क्या चाहता है ड्रैगन: देपसांग पर चीन का रुख साफ नहीं

https://www.amarujala.com/columns/opinion/border-dispute-china-intentions-are-not-clear-on-depsang

वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के चीनी इलाके मोल्दो में आयोजित भारत-चीन सैन्य वार्ता के बारहवें दौर के अंत में जारी संयुक्त बयान से संकेत मिलता है कि दोनों पक्षों के बीच कुछ प्रगति हुई है, क्योंकि ग्यारहवें दौर की वार्ता के बाद कोई बयान जारी नहीं किया गया था। ग्यारहवें दौर की वार्ता के बाद दोनों पक्षों ने वार्ता के बारे में अपने-अपने ढंग से बातें कीं। भारत सरकार के एक सूत्र ने बातचीत के बाद बताया था, कि ‘वे मौजूदा समझौतों और प्रोटोकॉल के अनुसार शेष मुद्दों को शीघ्रता से हल करने और वार्ता की गति को बनाए रखने के लिए सहमत हुए। दोनों पक्ष इस बात पर भी सहमत हुए कि अंतरिम तौर पर वे पश्चिमी क्षेत्र में एलएसी पर स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए अपने प्रभावी प्रयास जारी रखेंगे और संयुक्त रूप से शांति बनाए रखेंगे।’

वार्ता का यह दौर 14 जुलाई को विदेश मंत्रियों की बैठक और भारत-चीन सीमा मामलों पर परामर्श और समन्वय के लिए गठित कार्य तंत्र (डब्लूएमसीसी) की 25 जून को आयोजित बैठक के बाद आयोजित किया गया था। डब्लूएमसीसी एक राजनयिक समिति है, जो सही माहौल बनाने के लिए सैन्य स्तर की वार्ता के साथ काम करती है। इन दोनों बैठकों ने पीछे हटने की प्रक्रिया पर संभावित समझौते के लिए आधार तैयार किया। संयुक्त बयान जारी करके यह घोषणा की गई कि दोनों पक्ष गोगरा चोटी पर पीछे हटने के लिए सहमत हो गए हैं।

भारतीय सेना ने बयान जारी कर बताया कि लद्दाख में गोगरा पॉइंट पर भारत और चीन की सेनाएं पीछे हट गई हैं। यह प्रक्रिया चार और पांच अगस्त को पूरी हुई। दोनों देशों के सैनिक यहां अपने स्थायी बेस में चले गए हैं। वैसे भी गोगरा में पहले से ही 500 मीटर की दूरी पर दोनों तरफ के प्लाटून स्तर के बल तैनात थे। दोनों पक्षों ने अपने दावे वाले क्षेत्र से अपने सैनिकों को वापस बुला लिया है और उनके बीच का क्षेत्र पैंगोंग त्सो के समझौते की तरह नो-पेट्रोलिंग क्षेत्र बना रहेगा। पीछे हटने की प्रक्रिया में गतिरोध के दौरान किए गए किसी भी अस्थायी निर्माण को नष्ट करना और दूसरे पक्ष द्वारा उसका सत्यापन करना भी शामिल था। फरवरी में पैंगोंग त्सो के दोनों तरफ से पीछे हटने के बाद यह पीछे हटने की पहली कार्रवाई है। पैंगोंग त्सो से पीछे हटने की प्रक्रिया प्राथमिकता में थी, क्योंकि दोनों पक्षों के सैनिक निकट संपर्क में थे और कैलाश रिज पर कब्जा करने के बाद भारतीय सैनिक चीनी मोल्दो बेस की हर गतिविधि पर नजर रख सकते थे। वर्ष 1967 की नाथू ला और चो ला की घटना के बाद पहली बार, पैंगोंग त्सो के दक्षिण क्षेत्र में एलएसी पर गोलीबारी हुई थी, हालांकि वह केवल चेतावनी देने के लिए की गई थी।

पिछले दौर की वार्ताओं में चीन ने इस बात पर जोर दिया था कि पहले एलएसी पर तनाव कम करें, जिसका अर्थ है कि क्षेत्र से अतिरिक्त सैनिकों को वापस बुलाना चाहिए, जिससे भारत असहमत था। भारत अपने इस रुख पर अडिग रहा कि लद्दाख में गतिरोध के समाधान पर बातचीत चल ही रही है और पीछे हटने की प्रक्रिया तनाव कम करने से पहले होनी चाहिए। तथ्य यह है कि दोनों राष्ट्र बातचीत कर रहे हैं और पहले की वार्ताओं में हुए समझौतों का पालन कर रहे हैं, इससे यह संदेश मिलता है कि दीर्घकालिक समाधान की उम्मीद है।

संभव है कि अगले कुछ दौर की वार्ताओं के बाद हॉट स्प्रिंग्स में इसी तरह से दोनों देशों के सैनिक पीछे हट सकते हैं, जहां सैनिकों का स्तर समान रूप से कम है और पहले से ही दोनों पक्षों के सैनिकों के बीच दूरी है। फिर भी देपसांग समस्या ग्रस्त क्षेत्र बना रहेगा, जो वर्तमान गतिरोध में अग्रणी है। यह दोनों देशों के बीच एक दुखद मुद्दा है और इसे हल करने में समय लगेगा। देपसांग में, एक-दूसरे के दावा क्षेत्रों की गश्त को अवरुद्ध करते हुए सैनिक तैनात रहते हैं। एलएसी पर गलवां के बाद से कोई घटना नहीं हुई है। भारत की प्राथमिक मांग है कि चीन अप्रैल, 2020 से पहले की स्थिति में वापस लौटे, लेकिन ऐसा करने पर चीन की छवि को नुकसान होगा। इसलिए वह अपनी वापसी में यथासंभव देर करने की कोशिश करेगा। इसलिए लंबे समय से बातचीत चल ही रही है और कई दौर की वार्ताओं के बाद समझौते हुए हैं। बातचीत के बीच, चीन यह सुनिश्चित करेगा कि ऐसी कोई घटना न हो, जो वर्तमान परिदृश्य को बदल दे, जिससे उसकी समस्याएं और बढ़ेंगी। इसलिए, भारत को धैर्य रखने और अपने रुख पर अडिग रहने की आवश्यकता है।

तनाव कम करने की प्रक्रिया, जिसमें अतिरिक्त बलों को पीछे हटाना शामिल होगा, निकट भविष्य में असंभव दिखती है। चीन ने अपने सैनिकों के लिए न केवल मोल्दो में अपने स्थायी अड्डे के पास, बल्कि अक्साई चिन में भी अपने प्रमुख राजमार्ग की सुरक्षा बढ़ाने के लिए अतिरिक्त आवास का निर्माण किया है। भारत के लिए उस क्षेत्र में तैनात बलों का जलवायु के अनुकूल होना एक बड़ा मुद्दा है और इसलिए इसने लद्दाख क्षेत्र में अपने सैनिकों की तैनाती बढ़ा दी है, ताकि किसी भी चीनी दुस्साहस का मुकाबला करने के लिए हमारे सैनिक तैयार रहें। चीन ने पिछले सीमा समझौतों का उल्लंघन किया और संकट शुरू करने के लिए भारत को दोषी ठहराया। इसलिए चीन पर से भारत का भरोसा कम हुआ है।

पिछले साल मई में शुरू हुए गतिरोध के कारण दोनों देशों के बीच संबंधों में गिरावट आई है, हालांकि कोई संघर्ष बिंदु नहीं है, जिससे तनाव बढ़े। विश्वास की कमी ने दोनों पक्षों को तेजी से बुनियादी ढांचे का निर्माण करने के लिए प्रेरित किया है, दोनों कनेक्टिविटी बढ़ाने और अतिरिक्त बलों के लिए आवास तैयार करने के लिए ऐसा कर रहे हैं। गोगरा में, जिसे पीपी 17 भी कहा जाताहै, पीछे हटने की प्रक्रिया एक स्वागत योग्य कदम है और इसे हॉट स्प्रिंग्स यानी पीपी 15 में पीछे हटने के अगले चरण का मार्ग प्रशस्त करना चाहिए। हालांकि देपसांग लंबे समय तक एक गंभीर समस्या बना रहेगा। निकट भविष्य में तनाव कम करने पर चर्चा होने की संभावना नहीं है। कूटनीतिक और सैन्य, दोनों स्तरों पर भारत-चीन संबंधों में भरोसे की कमी बनी रहेगी।

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Maj Gen Harsha Kakkar

Retired Major General Indian Army

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