BRICS: अफगानिस्तान के हालात और तालिबान को ब्रिक्स का संदेश

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बृहस्पतिवार (9 सितंबर) को यानी 9/11 के हमले की बीसवीं बरसी से दो दिन पहले ब्रिक्स देशों का आभासी माध्यम से शिखर सम्मेलन संपन्न हुआ, जिसमें अफगानिस्तान के ताजा हालात पर चर्चा हुई। संयुक्त घोषणा पत्र में कहा गया कि, ‘हम आतंकवाद से लड़ने की प्राथमिकता को रेखांकित करते हैं, जिसमें आतंकी संगठनों द्वारा अफगान क्षेत्र को आतंकी पनाहगाह के रूप में उपयोग करने और अन्य देशों के खिलाफ हमले करने के साथ-साथ अफगानिस्तान में मादक पदार्थों के व्यापार को रोकने के प्रयास शामिल हैं। हम मानवीय संकट के निदान और महिलाओं, बच्चों एवं अल्पसंख्यकों समेत सबके मानवाधिकारों को बनाए रखने की जरूरतों पर जोर देते हैं।’ 

इसमें अफगानिस्तान में स्थिरता का भी जिक्र करते हुए कहा गया है कि, ‘हम एक समावेशी अंतर-अफगान वार्ता को बढ़ावा देने में योगदान करने की जरूरत पर बल देते हैं, ताकि वहां स्थिरता, नागरिक शांति, कानून-व्यवस्था सुनिश्चित हो सके।’ एक अस्थिर अफगानिस्तान के परिणामों के बारे में भारत के साथ चीन और रूस के चिंतित होने से इसकी चर्चा आवश्यक थी। अभी इस बारे में कोई स्पष्टता नहीं है कि निकट भविष्य में अफगानिस्तान का रुख कैसा होगा, हालांकि संकेत अच्छे नहीं दिखाई दे रहे हैं। 

भारत आतंकी समूहों, हक्कानी नेटवर्क, जैश-ए मोहम्मद एवं लश्कर-ए-तैयबा को लेकर चिंतित है, चीन ईस्ट तुर्किस्तान इस्लामिक मूवमेंट को लेकर, तो रूस इस्लामिक स्टेट-खुरासान और उज्बेकिस्तान के इस्लामी आंदोलन को लेकर चिंतित है। इस तरह से ब्रिक्स देशों के लिए अफगानिस्तान में सत्ता परिवर्तन चिंता का विषय बना हुआ है। मौजूदा संकट के लिए रूस अमेरिका और उसके सहयोगियों को दोषी ठहरा रहा है। पुतिन ने कहा कि, ‘अफगानिस्तान से अमेरिका और उसके सहयोगी की वापसी ने एक नया संकट पैदा कर दिया है और यह अभी स्पष्ट नहीं है कि यह क्षेत्रीय और वैश्विक सुरक्षा को कैसे प्रभावित करेगा।’ 

इस बीच, अफगानिस्तान में नई सरकार की घोषणा से वैश्विक विश्वास बढ़ाने में कोई मदद नहीं मिली, बल्कि इसने तालिबान के अपने वादों पर कायम रहने के प्रति संदेह पैदा कर दिया है। 33 सदस्यीय सरकार के गठन में पाकिस्तान का हाथ साफ नजर आ रहा है। नए शासन में नरमपंथियों के नेतृत्व में दोहा समझौते के वार्ताकारों को दरकिनार कर पाकिस्तान परस्त कट्टरपंथियों, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) द्वारा नामित आतंकियों और आईएसआई समर्थक हक्कानी नेटवर्क के सदस्यों को सरकार में शामिल किया गया है। इस सरकार में 30 पश्तुन, दो ताजिक जनजाति के सदस्य और एक उज्बेक शामिल हैं। सरकार में न तो किसी महिला को शामिल किया गया है और न ही हजारा समुदाय के किसी व्यक्ति को, जिससे ईरान नाराज है। नई सरकार के 14 सदस्य यूएनएससी द्वारा घोषित आतंकवादी हैं। सभी पश्चिमी देशों ने गैर-समावेशी सरकार के गठन की निंदा की है।

सबसे बुरी बात है कि तालिबान ने 11 सितंबर को सरकार के शपथ ग्रहण की घोषणा की है, बीस साल पहले 2001 को जिस दिन अमेरिका की धरती पर आतंकी हमला हुआ था, जो स्पष्ट रूप से तालिबान की पिछली सरकार के पतन का कारण बना। कट्टरपंथियों के नेतृत्व वाली तालिबान सरकार अमेरिका को एक संदेश देना चाहती है कि वह दबाव में नहीं झुकेगी। इस सरकार के गृहमंत्री सिराजुद्दीन हक्कानी हक्कानी नेटवर्क के नेता हैं, जिस पर 50 लाख अमेरिकी डॉलर का इनाम है, लेकिन वह इस सरकार में काफी कद्दावर नेता हैं। हाल के वर्षों में अफगानिस्तान स्थित भारतीय संपत्तियों पर हमले के पीछे हक्कानी नेटवर्क का हाथ था। नई व्यवस्था ने महिला मामलों के मंत्रालय को खत्म कर दिया और फिर से सदाचार के प्रचार और बुराई की रोकथाम के लिए नफरती मंत्रालय स्थापित किया, जो दर्शाता है कि कट्टरपंथियों का वर्चस्व जारी रहेगा। इसने पश्चिमी जगत को और नाराज कर दिया।

अफगानिस्तान में आतंकवादी समूहों के नियंत्रित होने के बजाय फलते-फूलते रहने की आशंका है। हक्कानी नेटवर्क पाक समर्थित आतंकवादी समूहों, जेईएम और लश्कर-ए-तैयबा से भी जुड़ा हुआ है, जो कश्मीर में सक्रिय हैं। इस बीच, अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए, ब्रिटिश खुफिया एजेंसी एमआई-6 और रूसी सुरक्षा परिषद के सचिव ने भारत का दौरा कर हमारे राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार से अफगानिस्तान के मौजूदा हालात और संभावित विकल्पों के बारे में चर्चा की। ऐसे में संभावना है कि नई काबुल सरकार के प्रति भविष्य का दृष्टिकोण संयुक्त रूप से निर्धारित किया जाएगा। नई काबुल सरकार ने अपने पहले आदेश में विरोध प्रदर्शनों और महिलाओं के खेल गतिविधियों में हिस्सा लेने पर प्रतिबंध लगा दिया है, जिससे वैश्विक चिंता बढ़ी ही है कि तालिबान की नई सरकार पिछली सरकार जैसी ही अथवा उससे भी बदतर होगी। ऐसी संभावना नहीं है कि पाकिस्तान से अफगानिस्तान को वित्तीय सहायता मिलेगी। हां, चीन ने 3.1 करोड़ डॉलर की सहायता का वादा किया है।

अफगानिस्तान में आंतरिक अस्थिरता जारी रहेगी। पाकिस्तानी सेना और वायुसेना की मदद से तालिबान भले ही पंजशीर घाटी में घुसने में कामयाब हो गए, लेकिन ऊंचाइयों पर अब भी नॉर्दन एलायंस का नियंत्रण है। खबरें हैं कि ताजिकिस्तान से तालिबान की मदद कर रहे पाकिस्तानी सेना पर हमला किया गया। ऐसा केवल रूस के मूक समर्थन से ही हो सकता है। यह उस देश में छद्म युद्ध शुरू होने का पहला संकेत है। ईरान ने केवल चुनी हुई और समावेशी सरकार को मान्यता देने की बात कही है। सरकार में हजारा समुदाय को शामिल नहीं करने से वह असहज होगा। वैसे भी प्रतिबंध के बावजूद अफगानिस्तान में विरोध प्रदर्शन जारी है। 

आर्थिक संकट, आंतरिक अस्थिरता और क्षेत्र के लिए खतरा बने आतंकवादी समूहों की वृद्धि, अफगानिस्तान के पड़ोस में स्थित ब्रिक्स देशों के लिए प्राथमिक चिंताएं बनी हुई हैं। नरमपंथियों को दरकिनार करने, पाक समर्थक कट्टरपंथियों और यूएनएससी नामित आतंकवादियों को सरकार में शामिल करने से अफगान सरकार के साथ संपर्क बढ़ाना और उसे मान्यता देना मुश्किल हो गया है। यदि दुनिया पाकिस्तान द्वारा थोपी गई कट्टरपंथियों की सरकार की उपेक्षा करेगी, तो अफगान नागरिकों को नुकसान होगा।

BRICS and Afghanistan

          The BRICS summit held on 09 Sept discussed the current situation in Afghanistan. The joint declaration mentioned, ‘We underscore the priority of fighting terrorism, including preventing attempts by terrorist organisations to use Afghan territory as terrorist sanctuary and to carry out attacks against other countries, as well as drug trade within Afghanistan. We emphasise the need to address the humanitarian situation and to uphold human rights, including those of women, children and minorities.’

There was also a mention of stability in Afghanistan. In this regard the statement read, ‘We stress the need to contribute to fostering an inclusive intra-Afghan dialogue so as to ensure stability, civil peace, law and order in the country.’ With India, China and Russia concerned about fallout from an unstable Afghanistan, its discussion was warranted. Currently, there is no clarity on how Afghanistan would fare in the near future, though, indicators do not appear positive. 

India remains concerned about anti-India terrorist groups, Haqqani network, JeM and LeT, China about the ETIM (East Turkestan Islamic Movement), while Russia about the Islamic State (ISIS-K) and the Islamic Movement of Uzbekistan. Thus, for BRICS nations, the change in Afghanistan remains a matter of concern. Russia blamed the US and its allies for the current crisis. Putin stated, ‘The US and its ally’s withdrawal from Afghanistan has led to a new crisis and it is still unclear how this will affect regional and global security.’

Meanwhile in Afghanistan the announcement of the new government has done little to boost global confidence of the Taliban sticking to their promises. The hand of Pakistan in the nomination of the 33-member government is evident. The new dispensation side lined Doha negotiators led by moderates, while Pak leaning hardliners, UNSC proscribed terrorists, and members of the pro-ISI Haqqani network were main gainers. The government comprises of 30 Pashtuns, two ethnic Tajiks and one Uzbek. There were no women as also none from the Hazara community, angering Iran. 14 members of the new government are UNSC proscribed terrorists. All western nations criticized the formation of a non-inclusive government.

To add insult to injury, the Taliban announced the government would be sworn in on 11 Sept, the day the US remembers the attack on its soil as also the cause of the fall of Taliban 1.0. Apparently, the hardliner lead government seeks to send a strong message to the US that it will not bend under pressure.

The interior minister, Sirajuddin Haqqani, leader of the Haqqani network, an individual who carries a bounty of USD 5 million, ended up as the most powerful leader in the new government. The Haqqani network was behind attacks on Indian assets in Afghanistan in recent years. The new dispensation abolished the Women’s Affairs Ministry and re-established the hated Ministry for the Promotion of Virtue and Prevention of Vice, indicating it would continue being dominated by hardliners. This further angered the west.

Terrorist groups in Afghanistan are likely to continue to flourish, rather than be controlled, as demanded by the globe. The Haqqani’s are suspected to be close to the ISIS-K which launched the recent suicide attack on Kabul airport and were subsequently targeted by the US, possibly on Taliban inputs. They are also closely associated to Pak backed terrorist groups, JeM and LeT, which operate in Kashmir. The new Afghan army chief, Qari Fasihuddin, is reported to have close links with the ETIM which China seeks to suppress.  

Meanwhile, the CIA and MI6 (British Secret Service) chiefs, as also the Russian secretary of their security council, visited India and held discussions with the National Security Advisor on the current scenario in Afghanistan and possible options. It is possible that future approach towards the new Kabul government will be determined jointly.

The first Afghan government orders banning protests and stopping women from participating in sporting activities have only added to global discomfort that Taliban 2.0 would be similar or worse than Taliban 1.0. It is unlikely that, despite persistent requests from Pakistan, financial support for Afghanistan would be released. Its recognition remains in limbo. This will push the country into an economic mess. China, however promised an aid of USD 31 Million. 

Internally, instability in Afghanistan continues to persist. In Panjshir, while the Taliban, with active support from the Pak army and air force may have entered the valley, but heights continue being held by the Northern Alliance. These operations have resulted in large losses to the Pak army, which it can never declare as it would open doors to their direct involvement. There were reports of aircraft, belonging to the erstwhile Afghan air force, being launched from Tajikistan targeting Pak forces supporting the Taliban. This could only happen with tacit support of Russia. This is the first sign of commencement of proxy war in the country.

Iran had stated that it would only recognize a government which was elected and inclusive. With non-inclusion of Hazara’s, Iran would remain uneasy. It may be preparing to employ its Fatemiyoun Brigade, comprising of battle hardened Afghan Hazara’s from Syria, in case Hazara’s are threatened. This could expand the proxy war sucking in Pakistan, which would be compelled to intervene to ensure it retains its control over Afghanistan. Internally, despite a ban and strong response, protests continue unabated.

Economic turmoil, internal instability and growth of terrorist groups threatening the region, remain primary concerns for BRICS nations, located in Afghanistan’s neighbourhood. Engaging the Afghan government and recognizing it has only become harder by sidelining of moderates and emergence of pro-Pak hardliners and UNSC proscribed terrorists. The Afghan people would suffer as the world would ignore the hard line government imposed by Pakistan.

About the Author

Maj Gen Harsha Kakkar

Retired Major General Indian Army

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