Kashmir and the Taliban (Hindi) Chanakya Forum 15 Oct 2021
पाकिस्तान भी लगाए बैठा उम्मीद
पाक सरकार को भी कुछ ऐसी ही उम्मीद है। इमरान खान की पीटीआई प्रवक्ता नीलम इरशाद शेख ने पाक टीवी पर एक चर्चा के दौरान बताया कि, ‘तालिबान ने कहा है कि वे हमारे साथ हैं और वे कश्मीर में हमारी मदद करेंगे।’ एंकर द्वारा यह चेतावनी देने के बाद कि आप अपनी टिप्पणियों के प्रति सावधान रहें, वो अपने शब्दों पर कायम रही। दक्षिण एशियाई संस्थान की पाकिस्तानी राजनीतिक विशेषज्ञ आयशा सिद्दीका के अनुसार, ‘काबुल में जीत के बाद जेईएम ने फिर से कश्मीर के बारे में बात करना शुरू कर दिया है।’ काबुल में हक्कानी के नेतृत्व वाली सरकार के गठन के बाद से भारतीय संपत्ति, अफगानिस्तान में वाणिज्य दूतावास और अन्य दूतावासों को निशाना बनाने के उत्तरदायी शासकों में विश्वास जोर पकड़ रहा है।
अफगान पर बढ़ता वैश्विक दबाव
इस समय अफगान सरकार पर वैश्विक दबाव बढ़ रहा है। जब तक वे आतंकवादी समूहों को शामिल ना करने के अपने इरादे के बारे में वैश्विक समुदाय को आश्वस्त नहीं करते, तब तक उन्हें न तो मान्यता दी जाएगी और न ही वित्तीय सहायता जारी होगी, और इसके फलस्वरूप देश में अशांति का वातावरण रहेगा। तालिबान ने पिछले सप्ताह के अंत में अमेरिका के साथ अपनी पहली बातचीत में इस बात पर बल दिया कि अफगान सरकार को अस्थिर करने से यह क्षेत्र प्रभावित हो सकता है। उन्होंने आगे कहा कि वे किसी भी आतंकवादी समूह का समर्थन कभी नहीं करेंगे, हालांकि उनकी इस बात पर किसी को विश्वास नहीं है। नए तालिबानी नेतृत्व को पहचानने और उसके साथ बातचीत करने के लिए वैश्विक समुदाय पाकिस्तान की दलीलें नहीं सुन रहा।
अफगानिस्तान के प्रति एक साझा रणनीति तैयार करने के लिए ज्यादातर देश भारत के संपर्क में हैं। इस संबंध में की गयी टिप्पणियों में नवीनतम टिप्पणी अमेरिकी विदेश मंत्री वेंडी शेरमेन की थीं, जिन्होंने अपनी भारत यात्रा के दौरान कहा था, ‘अमेरिका अफगानिस्तान में व्यापक आतंकवाद की संभावना के संबंध में भारत की चिंताओं की अत्यधिक सराहना करता है। आतंकवाद को रोकने के लिए हम दोनों देशों का साथ मिलकर काम करने का एक लंबा इतिहास रहा है।’ पाकिस्तान के लिए उन्होंने कहा कि, ‘तालिबान के प्रति अपने दृष्टिकोण में हम सभी को एकमत होना होगा। हम सभी को यह सुनिश्चित करने की जरूरत है कि हमारे पास भारत सहित अन्य सभी देशों की सुरक्षा सुनिश्चित करने की आवश्यक क्षमताएं हैं। इसलिए मैं सचिव (एंटनी) ब्लिंकन की (पाकिस्तान के साथ) बातचीत को आगे बढ़ाते हुए इस बारे में बहुत खास वार्ता करने जा रहा हूँ ।’
ऐसे में तालिबान के नेतृत्व वाली अफगान सरकार क्या कर सकती थी। हालांकि यह आधिकारिक तौर पर कश्मीर पर पाकिस्तान की कार्रवाई का समर्थन नहीं कर सकती , लेकिन आईएसआई या पाक आतंकवादी समूहों को आईईडी बनाने के लिए अपने लड़ाकू दस्ते देने या विस्फोटक विशेषज्ञों की भर्ती के बारे में अपनी आंखें मूंद लेगा, इससे पाक आतंकी समूहों की ताकत में इजाफा होगा।
पाकिस्तान की सहायता करने के लिए उन्हें अपने आतंकवादी प्रशिक्षण शिविरों और उनके आतंकी समूहों के मुखिया को पूर्वी अफगान में शिफ्ट करने की अनुमति दे सकते हैं l इससे पाक को कई फायदे होंगे। सबसे पहला लाभ यह होगा कि प्रशिक्षण शिविर किसी तीसरे देश में होंगे और यदि भारत बालाकोट की तरह की कोई कार्यवाही करता है तो इसका असर अफगानिस्तान पर पड़ेगा जो आधिकारिक तौर पर भारत विरोधी रुख होगा। ऐसी कार्यवाही से भारत-अफगान संबंधों को नुकसान होगा और पाकिस्तान को फायदा होगा। दूसरे, पाकिस्तान अपनी धरती पर प्रशिक्षण शिविरों की उपस्थिति से इनकार करके एफएटीएफ जैसे वैश्विक मंचों पर शर्मिंदगी से बच सकता है। तीसरा, फ़ायदा यह होगा कि आतंकवादी समूह किसी तीसरे देश में हैं, इसलिए पाकिस्तान उन पर नियंत्रण से इनकार कर सकता है। इससे भारत-अफगान संबंधों मे तनाव होगा। यदि भारत अफगानिस्तान को शिविर स्थलों की जानकारी देता है तो उन शिविरों को आसानी से दूसरी जगह शिफ्ट किया जा सकता है क्योंकि अधिकांश शिविर अस्थायी ढांचे के हैं।
तालिबान द्वारा पूर्व अफगान बलों से हथियाए गए छोटे हथियारों का विशाल संग्रह पाकिस्तान पहले ही हासिल कर चुका है। इन छोटे हथियारों को नाइट साइट्स, स्नाइपरस्कोप आदि के साथ पाकिस्तान ले जाया गया है। ये कश्मीर में सक्रिय आतंकवादियों की क्षमताओं को बढ़ा सकते हैं। इनमें से कुछ को ड्रोन के सहारे घाटी में उतारा जा सकता है या घुसपैठियों अथवा ड्रग कोरियर से तस्करी करके लाया जा सकता है। आने वाले समय में सुरक्षा बलों के लिए यह चिंता का विषय होगा।
बदल चुका है भारत भी
पाकिस्तान भले ही तालिबान की जीत की खुशी मना रहा हो और कश्मीर का सपना देख रहा हो, लेकिन 1990 के दशक में जब तालिबान 1.0 सत्ता में था, तब से लेकर अब तक भारतीय पक्ष में बहुत अधिक बदलाव आया है। इलेक्ट्रॉनिक और ड्रोन निगरानी द्वारा समर्थित एक मजबूत कैलिब्रेटेड और लगातार हो रही घुसपैठ विरोधी ग्रिड के साथ एक मजबूत सीमा बाड़ ने भारतीय सीमा प्रबंधन को अति आधुनिक बना दिया है। घुसपैठ पर अंकुश लगा पाना इतना सरल नहीं है, सफलता के अवसर बहुत कम है। राष्ट्रीय राइफल्स, जो भारतीय उग्रवाद विरोधी अभियानों की रीढ़ है, उसने अपने ऑपरेटिंग ग्रिड के साथ खुद को एक बहुत ही शक्तिशाली बल के रूप में स्थापित किया है।
जम्मू-कश्मीर पुलिस प्रभावशाली खुफिया नेटवर्क के साथ एक मजबूत ताकत के रूप में विकसित हुई है। जिसके परिणामस्वरूप सफल मुठभेड़ हुई है। हुर्रियत, जो मुठभेड़ों में पकड़े गए आतंकवादियों के समर्थन में हिंसा करने के लिए पैसा देता था, अब असहाय है। हवाला के जरिए पैसा नहीं पहुँच पाने से आतंकवादियों को दिए जाने वाला समर्थन और हिंसा खत्म हो गई है। स्थानीय आबादी ने शांति महसूस की और वे आतंकवाद विरोधी बन गए। कश्मीर में संचालन करना और इस मानव खुफिया नेटवर्क से बच कर अफगानों और पाक आतंकवादियों की घुसपैठ अब मुश्किल है।
यदि पाकिस्तान घुसपैठ करने के लिए संघर्ष विराम का उल्लंघन करता है तो अब भारत की पाकिस्तान के खिलाफ कड़ी जवाबी कार्रवाई करने की नीति है। और यदि अफगान आतंकवादियों की पहचान हो जाती है तो इस सूचना के आधार पर भारत यह दावा करके पाकिस्तान को बदनाम कर सकता है कि इस देश के पास कश्मीर हासिल करने की क्षमता का अभाव है इसलिए वह तालिबान का समर्थन मांग रहा है।
अफगानिस्तान में तालिबान का समर्थन करने के लिए पाकिस्तान पहले से ही वैश्विक प्रतिक्रिया का सामना कर रहा है। यदि पाकिस्तान उन्हें कश्मीर में साथ लाने का प्रयास करता है तो वह और अधिक अलग-थलग पड़ जायेगा। भारत आतंकवाद का समर्थन करने के लिए विश्व निकायों को पाकिस्तान के खिलाफ कर सकता है। इसका असर पाकिस्तान पर बहुत अधिक पड़ेगा, जो पहले से ही आर्थिक पतन के कगार पर है।
Addressing the India Today Conclave last weekend, Army Chief General Naravane, stated that it is possible that Afghan terrorists may be pushed into Kashmir once Afghanistan stabilizes. He added that the army is prepared for such a scenario and has strengthened its anti-infiltration and counter terrorism grids. Similar sentiments have been expressed by other senior army functionaries. The CDS, General Rawat, addressing a seminar stated, ‘we will make sure that any activity likely to flow out of Afghanistan and then find its way into India will be dealt with in the manner in which we have been dealing with terrorism in our country.’ General Pandey, GOC 15 Corps in Srinagar, mentioned in a press interaction, ‘There’s a possibility that US forces pull out from Afghanistan may push some militants into Kashmir.’
Pak based terrorist group leaders have begun hoping for Taliban support in Kashmir. Hizbul Mujahideen’s chief, Syed Salahuddin, congratulating the Taliban requested, ‘I pray to Allah that he strengthens the Islamic Emirate of Afghanistan so that they may support Kashmiris against India.’ Masood Azar, leader of JeM was reported to have visited Kandahar, met Taliban leaders and requested them for support in Kashmir. They are aware that they alone are incapable of making any dent in Kashmir.
The Pak government also has similar hopes. In a discussion on Pak TV, Neelam Irshad Sheikh, spokesperson of Imran Khan’s PTI, stated, ‘The Taliban are saying that they are with us, and they will help us in Kashmir.’ She stuck to her words, despite being warned by the anchor to be careful of her comments. Ayesha Siddiqa, a Pakistani political scientist with the South Asian Institute stated, ‘After victory in Kabul, JeM has started to talk about Kashmir again.’ With the forming of a Haqqani led government in Kabul, dominated by those responsible for targeting Indian assets, consulates and embassy in Afghanistan, this belief is gaining ground.
Simultaneously, there is global pressure mounting on the Afghan government. Unless they convince the global community of their firm intention of denying space to terrorist groups, they would neither be recognized nor would financial aid flow, ensuring unrest due to growing instability within the country. The Taliban in its first interaction with the US, last weekend, stressed that destabilizing the Afghan government could impact the region. They have continued to state that they will not support any terrorist groups, though no one believes them. Pakistan’s desperate pleas to the global community to recognize and interact with the new Taliban leadership has fallen in deaf ears.
Most nations are in constant touch with India on determining a common strategy towards Afghanistan. The latest to spouse these comments was the US Deputy Secretary of State, Wendy Sherman, who stated during her visit to India, ‘US profoundly appreciates India’s concerns about the potential of terrorism to spill over from Afghanistan into the wider region. Our two countries have a long history of working together to prevent terrorism.’ On Pakistan, she added, ‘We all need to be of one mind in the approach to the Taliban. We all need to make sure that we have the capabilities that we need to ensure everybody’s security, including India’s, of course. So I am going to have some very specific conversations, continuing conversations that Secretary (Antony) Blinken has had (with Pakistan).’
In such a scenario, what could the Taliban led Afghan government do. While it may officially not support Pakistan’s actions on Kashmir, it would turn a blind eye to the ISI or Pak terrorist groups recruiting their battle-hardened fighters or even explosive experts for making IEDs, most of whom are armed but unemployed. This would boost the capability of Pak terrorist groups.
The next form of support would be to permit Pakistan to shift its terrorist training camps as also leadership of terrorist groups from Pakistan to Eastern Afghanistan. This will provide Pak with multiple benefits. Firstly, training camps would be in a third country and in case India conducts a strike on similar lines as Balakote, it could result in Afghanistan taking an anti-India stance officially. Such an act would mar Indo-Afghan relations, benefiting Pakistan. Secondly, Pakistan could deny presence of training camps on its soil, saving itself from embarrassment in global forums like the FATF. Thirdly, since terrorist groups are located in a third country, Pak could deny control over them. Finally, India-Afghan relations would be strained. In case India provides locations of camp sites to Afghanistan, they could be easily shifted as most remain temporary structures.
Pakistan has already gained from the vast collection of small arms grabbed by the Taliban from the erstwhile Afghan forces. Truckloads of these small arms have been moved to Pakistan alongside sophisticated ancillaries like night sights, sniperscopes etc. These could enhance capabilities of terrorists operating in Kashmir. Some of these could be drone dropped into the valley or smuggled by infiltrators or drug couriers. This will be a matter of concern in the period ahead for security forces.
While Pak may be rejoicing the Taliban victory and dreaming of its fallout in Kashmir, the scenario on the Indian side has changed in multiple ways since the 1990’s when Taliban 1.0 was in power. A robust border fencing with a strong well-calibrated and constantly moving anti-infiltration grid, backed by electronic and drone surveillance has modernized Indian border management concepts. While curbing infiltration will never be a zero-sum game, chances of success are very low. The Rashtriya Rifles, the backbone of Indian counterinsurgency operations, has established itself as a very potent force with its own operating grids.
The J and K police has grown into a formidable force with an impressive intelligence network resulting in successful encounters. The Hurriyat, which had funded violence in support of terrorists caught in encounters is now defunct. With no free money flowing through hawala, support for terrorists and violence has ended. The local population has realised benefits of peace and have become anti-terrorists. Operating in Kashmir and avoiding these human intelligence networks will difficult navigation for infiltrating Afghans, even with Pak terrorists in tow.
Added to this is the current policy of strong retaliation against Pak positions in case it violates the ceasefire to support infiltration. Finally, in case Afghan terrorists are detected, India employing informational warfare could discredit Pakistan by claiming that the nation lacks the ability to gain Kashmir hence is seeking support of the Taliban.
Pakistan is already facing global backlash for supporting the Taliban in Afghanistan. In case it attempts to employ them in Kashmir it would face further isolation. India could push world bodies against Pakistan on the pretext of it supporting terrorism. This would impact Pakistan, which is already on the verge of an economic collapse.