Lessons Pakistan forgot from 1971 Chanakya Forum 12 Dec 2021
वर्ष 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में बांग्लादेश का निर्माण आधुनिक युग में भारतीय सेना के लिए एक बहुत बड़ा कीर्तिमान है। इसकी बराबरी इस युग में विश्व के किसी कोने में नहीं हुई है। पूर्वी पाकिस्तान में पाकिस्तानी सेना केवल 14 दिन में परास्त हो गई और बिना किसी शर्त के भारतीय सेना के सामने 93000 युद्ध बंदियों के साथ समर्पण कर दिया। इस युद्ध के लिए परिस्थितियां बनाने में जहां एक ओर पाकिस्तान के राष्ट्रीय नेताओं तथा वहां की सेना एवं नौकरशाही के द्वारा पूर्वी पाकिस्तान की गई ज्यादतियां जिम्मेदार है वहीं पश्चिमी पाकिस्तान के पंजाबी समुदाय के द्वारा स्वयं को पूर्वी पाकिस्तान के बंगालियों से श्रेष्ठ समझना भी है। पाकिस्तान के वजूद में आने के बाद पांच दशक बाद भी पाकिस्तान ने अंग्रेजी शासन में हुई ज्यादतियों से कोई सबक नहीं लिया। वहां पर वही गलतियां दोहराई जा रही थी जो अंग्रेजों ने पूरे भारतवर्ष में की थी। जिसके कारण उन्हें भारत से जाना पड़ा। अंग्रेजों की तरह ही पश्चिमी पाकिस्तान के शासकों को बांग्लादेश से जाना पड़ा।
जनरल यहया खान जो एक फौजी तानाशाह था और रंगीन मिजाज स्त्रियों का शौकीन और शराबी था, ऐसे व्यक्ति ने पाकिस्तान की सत्ता पर 1969 में कब्जा कर लिया था। पाकिस्तान में देशव्यापी चुनाव 1970 में हुए जिसमें शेखमुजीब-उर रहमान की अवामी लीग पार्टी को पूरे देश में सफलता मिली तथा पाकिस्तान ने बहुमत से शेख को नेता मान लिया था। परंतु ऐसे बहुमत से जीते नेता को भी पश्चिमी पाकिस्तान के सामंती प्रवृत्ति के जनरल याहया खान ने प्रधानमंत्री बनाने से मना कर दिया था। क्योंकि वह पूर्व पाकिस्तान से एक बंगाली थे। इसके बाद उन्होंने आवामी लीग के नेताओं से न कोई परामर्श किया न ही जानकारी दी और शेख मुजीबुर रहमान को जेल में डाल दिया। इसके बाद पूरे पूर्वी पाकिस्तान में पाकिस्तान की सरकार ने सेना के बल पर अत्याचार करने शुरू कर दिए। जिनमें निर्दोष बंगालियों पर तरह-तरह की शक्ति का प्रयोग और महिलाओं से बलात्कार शामिल थे। इन सबसे और प्रजातांत्रिक व्यवस्था से चुनी गई सरकार को न बनने के कारण पूरे पूर्वी पाकिस्तान में विरोध शुरू हो गया और विरोध के परिणाम स्वरूप मुक्ति वाहिनी का निर्माण हुआ। इन स्थितियों में पूर्वी पाकिस्तान से एक करोड़ से ज्यादा शरणार्थियों के भारत में आने के कारण भारत को पूर्व पाकिस्तान में दखल देना पड़ा और नतीजे में बांग्लादेश का निर्माण हुआ।
पहला सबक पाकिस्तान को यह सीखना चाहिए था कि तानाशाही के परिणाम अच्छे नहीं होते और यह कभी स्वीकार्य नहीं है। वहां के प्रसिद्ध स्तंभ लेखक अब्दुल रियाज ने पाकिस्तान के समाचार पत्र डॉन में 2005 दिसंबर में लिखा था कि सैनिक तानाशाही के परिणाम स्वरूप 1970 की दुखद घटना हुई तथा पाकिस्तान के टुकड़े टुकड़े हुए और पूर्वी पाकिस्तान में हमारी सेना की शर्मनाक हार हुई। उन्होंने और लिखा कि फौजी शासन को हटाने के स्थान पर हमने इसको राष्ट्रीय स्तर पर स्वीकार कर लिया है।
फौजी तानाशाहों ने पाकिस्तान की व्यवस्था को छिन्न-भिन्न कर दिया है। इसके साथ-साथ धार्मिक कट्टरपंथ को बढ़ावा दीया और आतंकी संगठनों को पाकिस्तान में जगह दी। जिसके कारण दुनिया भर में पाकिस्तान का बहिष्कार हुआ तथा इन आतंकवादियों की मदद से वहां की सेना अपने आप को और भी ताकतवर महसूस करने लगी। आज के समय में पाकिस्तान की सेना वहां पर जमीनों पर कब्जे, देश की अर्थव्यवस्था में जबरदस्त हस्तक्षेप तथा बड़े स्तर पर भ्रष्टाचार में लिप्त है। देश में ऐसा कोई आर्थिक घोटाला नहीं है जिसमें वहां की सेना लिप्त न हो। देश में ऐसी कोई संस्था नहीं है जिसमें वहां की सेना का हाथ ना हो। पाकिस्तान को फौजी शासन से थोड़े समय के लिए उस समय मुक्ति मिली जब भुट्टो ने 70 के दशक में सत्ता संभाली। परंतु यह कुछ समय ही चला और दोबारा 1977 में जनरल जियाउल हक ने सत्ता पर कब्जा कर लिया। उस समय सैनिक विद्रोह के समय पाकिस्तान में नाम मात्र का प्रजातंत्र था, जो उस समय भी और आज भी सेना के द्वारा ही नियंत्रित है। वहां का हर राजनीतिक दल केवल सेना के आशीर्वाद से ही सत्ता में आता है।
पाकिस्तान का हर क्षेत्र में असफल होने का मुख्य कारण सेना का वहां के हर क्षेत्र में दखल देना है। सेना ने वहां के नागरिकों को अपनी ताकत से यह विश्वास दिला दिया है कि उसने कभी युद्ध में हार नहीं देखी और वही पाकिस्तान की असली रक्षक है। सेना ने 1971 में हार को भी बंगाली हिंदुओं द्वारा भारत के साथ मिलकर रचे हुए षड्यंत्र को मुख्य कारण बताया है। 15 अगस्त 2014 को वहां के डॉन अखबार में एक खबर छपी कि पाकिस्तान के स्कूलों और कॉलेजों की किताबों में बताया जा रहा है कि पूर्वी पाकिस्तान में 1971 से पहले काफी मात्रा में हिंदू थे जिन्होंने सच्चे दिल से कभी पाकिस्तान को स्वीकार नहीं किया था। इन हिंदुओं में बड़ी संख्या में स्कूल कॉलेजों में शिक्षक थे जो वहां के छात्रों में नकारात्मकता जगा रहे थे। इन्होंने पाकिस्तान सरकार को नकारात्मक रूप में दिखा-दिखा कर तथा उसे वहां के निवासियों की दुश्मन तथा शोषण करने वाली बता कर पाकिस्तान की केंद्रीय सरकार के विरुद्ध जनता में रोष पैदा किया। इसी लेख में 1965 के युद्ध के बारे में एक और बात छपी है जिसमें बताया गया है की 1965 के युद्ध में भारत के बहुत से क्षेत्रों पर पाकिस्तानी सेना ने कब्जा कर लिया था जिससे घबराकर भारत संयुक्त राष्ट्र संघ की शरण में गया और वहां पर सीजफायर करवाया। बड़े दिल से पाकिस्तान ने भारत की सारी जीती जमीन वापस कर दी और भारत की सिविल सरकार ने भारत की सेना की प्रतिष्ठा को बनाए रखने के लिए आज तक इतनी हिम्मत नहीं की कि वह देश की जनता को उस युद्ध की सच्चाई बता सके। अक्सर सवाल पूछने पर 1965 का झूठ गायब हो जाता है और इस प्रकार भारत देश झूठ के सहारे ही अपनी गलतियों को दोहराता रहता है।
पाकिस्तान ने जो नरसंहार पूर्वी पाकिस्तान में किया था उसके कारण वहां विद्रोह शुरू हुआ तथा मुक्ति वाहनी का निर्माण हुआ। अब पाकिस्तान उसी प्रकार बलूचिस्तान का शोषण कर रहा है, जिसके द्वारा पंजाबी शक्तिशाली लोगों को मालामाल किया जा सके। इस प्रकार बलूचिस्तान आज पाकिस्तान का सबसे पिछड़ा क्षेत्र है। पाक सेना पूर्वी पाकिस्तान की गलतियों को बलूचिस्तान और पख्तूनख्वा क्षेत्र में उसी प्रकार दोहरा रही है। सेना यहां पर जबरदस्ती लोगों को गायब, महिलाओं के साथ बलात्कार तथा गैर कानूनी मौतों के द्वारा यहां की जनता की आवाज को दबा रही है। यहां के लोगों ने अब हथियार उठा लिए हैं और यह भी पूर्वी पाकिस्तान की तरह ही पाक से अलग होना चाहते हैं। यदि ऐसा होता है तो उसके लिए केवल और केवल वहां की सेना ही जिम्मेवार होगी। क्योंकि सेना यहां के पंजाबी समाज के लोगों को पाकिस्तान के अन्य समुदायों से अच्छा समझती है और इस विश्वास के लिए सेना जनता को क्रूरता से कुचल रही है।
1971 में पाकिस्तान की सोच थी कि उसके अमेरिका और चीन से अच्छे संबंधों तथा उसका दक्षिण पूर्व एशिया संधि (SEAT) का सदस्य होने के कारण भारत दबाव में आकर पीछे हट जाएगा और पाक की जीत अवश्य होगी। उसे चीन पर बहुत विश्वास था कि वह भारत को उसकी उत्तरी सीमा पर तनाव पैदा करके भारत की सेना को उधर की तरफ उलझा कर रखेगा। इसके साथ ही उसे बहुत आशा थी कि अमेरिका का सेवंथ फ्लीट बांग्लादेश युद्ध में उसकी मदद करेगा। इसलिए पाकिस्तान ने 3 दिसंबर 1971 को युद्ध प्रारंभ कर दिया और भूल गया कि हर देश अपने राष्ट्रीय हितों को देखकर ही कोई कदम उठाते हैं। इसलिए चीन ने पाक की मांग को अनदेखा कर दिया और अमेरिका ने कुछ दिखावा करने की कोशिश की परंतु बाद में वह भी पीछे हट गया। पाकिस्तान अपनी गलतियां, जिनके कारण वह हर क्षेत्र में असफल रहा और देश के टुकड़े हो गए उनको वह आज भी स्वीकार नहीं करना चाहता।
आजकल पाकिस्तान कश्मीर मुद्दे के लिए ओआईसी की मदद की बहुत आशा कर रहा है। जहां से उसे लगातार निराशा ही मिल रही है। पाक बार-बार ओआईसी का विशेष अधिवेशन कश्मीर पर बुलाने की मांग कर रहा है जो बार-बार ठुकराई जा रही है। पाकिस्तान के बार-बार कहने के बावजूद भी चीन इस मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र संघ में नहीं उठा रहा है। अमेरिका जिसने 71 में पाक की मदद की थी वह अब पाकिस्तान को अपना साथी नहीं मानता। पाकिस्तान अभी भी आशा कर रहा है कि उसकी भारत विरोधी चालों में चीन उसकी मदद करेगा और भारत की उत्तरी सीमा पर दबाव बना कर भारत को तंग करेगा। परंतु उसकी यह आशा केवल आशा ही रह जाएगी। दुनिया आगे बढ़ चुकी है परंतु पाकिस्तान अभी भी इतिहास में गुम है। पांच दशक बीत जाने के बाद भी पाकिस्तान ने अपनी गलतियों से कोई सबक नहीं सीखा है। जिसके कारण उसके टुकड़े हो गए और वह अभी भी उन गलतियों को दोहरा रहा है। इतना सब हो जाने के बाद भी पाकिस्तान सच्चाई को स्वीकार करने से पूरी तरह से मना कर रहा है।
The 1971 war, where Bangladesh was created from East Pakistan was the crowning glory in India’s military history. The Pak army in East Pakistan collapsed in just 14 days and the war ended with the unconditional surrender of their forces leading to India having to cater for 93,000 prisoners of war. The scenario leading to the war was Pakistan’s own follies, including high headedness of its national leadership, both army and political and its belief in superiority of its Punjabi dominated army, bureaucracy and political leadership over the Bengali’s. Five decades have elapsed but Pakistan has not grasped lessons from that era, repeating the same mistakes.
Pakistan was ruled by Yahya Khan, a womanizer and heavy drinker military dictator, who grabbed power in 1969. The holding of country wide elections held in Dec 1970, led to East Pakistan’s Sheikh Mujibur Rehman’s Awami League obtaining majority, which irked the superior west and they refused to appoint him as the Prime Minister. Instead of discussions to find an amicable solution they placed him under arrest and ordered a crackdown in East Pakistan. Rejecting a democratically elected government and employing brutal force against innocent Bengali’s led to the creation of the resistance movement, Mukti Bahini. India was forced to act, and the result was the birth of Bangladesh.
Th first lesson which Pak should have adopted is that dictatorships have always been their bane and must never be acceptable. As Ayaz Amir wrote in the Dawn in Dec 2005, ‘it was military rule and the legacy of folly it accumulated which led, almost inexorably, to the tragedy of 1971: dismemberment of Pakistan and the humiliating surrender of our forces in the east.’ He adds, ‘far from forgetting military rule, we have almost embraced it as a national way of life.’
Military dictatorships have broken Pakistan’s economy, enhanced radicalization and support to terrorist groups leading to the country’s global isolation while enhancing the power of the army. Currently, it grabs land, runs businesses and is involved in large scale corruption. There is no financial scandal where it is not involved. There is no institution where it does not have its hold. Pakistan got its opportunity to debunk military rule with Bhutto taking over the reins. However this was short lived and in 1977, Zia ul Haq grabbed power. There were no protests against coups then and even now. Currently, Pakistan has a sham democratic government, overseen by the army. Every political party fights favour with the army to seize power or survive.
The reason for the Pak army dominating the country despite it having failed them on every occasion, is that it has changed the country’s history and convinced its people that it has never lost a war and has been the nation’s saviour. It projected its defeat in 1971 as a conspiracy by India with Bengali Hindu’s and not a loss in a war.
An op-ed titled, ‘What is the most blatant lie taught through Pakistan textbooks,’ published in the Dawn of 15 Aug 2014 quotes its Punjab school textbooks which state, ‘There were a large number of Hindus in East Pakistan. They had never truly accepted Pakistan. A large number of them were teachers in schools and colleges. They continued creating a negative impression among students.’ It adds, ‘They went around depicting the central Government and (the then) West Pakistan as enemy and exploiter.’
The article quotes another textbook for the 1965 war, which states, ‘The Pakistan Army conquered several areas of India, and when India was at the verge of being defeated, she ran to the UN to beg for a cease-fire. Magnanimously, thereafter, Pakistan returned all conquered territories to India.’ No civil government has possessed courage to project the truth thus lowering the standing of the army. Anyone questioning these lies vanishes. The nation continues to thrive on lies and thus repeats past mistakes.
The genocide it launched in East Pakistan led to a revolt and the creation of the Mukti Bahini. In a similar manner, it is exploiting resources of Baluchistan to enrich its Punjabi elite while the region remains the most backward in the country. The Pak army is repeating mistakes of East Pakistan in Baluchistan and Khyber Pakhtunkhwa. It is suppressing protests and demands for human rights by enforced disappearances, rapes and extra judicial killings. The Baloch and Pashtuns are up in arms and seek to break away as East Pakistan did. The Pak army will be responsible for the any further breakup of the country only because it believes that its Punjabi elite are superior to the masses, and it can suppress its population by brutality.
In 1971, Pakistan presumed that its relations with the US, China and being a member of SEATO (Southeast Asian Treaty Organization) will ensure that India will be forced to withdraw, and Pak assured of victory. It was banking on China to divert Indian military power by posturing along India’s northern borders. It was hopeful of the US seventh fleet coming to its rescue in the war in Bangladesh. Hence it commenced operations on 03 Dec 1971. What it failed to comprehend is that nation’s act on their own national interests. China ignored Pakistan’s demands and the US did display some support but backed down. Ultimately Pakistan was left to handle its own mess where it failed and finally surrendered. In disgust, it quit SEATO.
Currently, Pakistan leans on the OIC for support on Kashmir, where it is continuously disappointed. Its calls for holding a special session on Kashmir has been repeatedly turned down. Its banking on China on raising Kashmir in the UNSC has never succeeded. The US which supported it in 1971 no longer considers it an ally. It continues to hope that in the event of a skirmish with India, China could apply pressure on India’s northern borders. The hope may just remain a hope. The world has moved on, while Pakistan remains mired in history.
Five decades have elapsed but Pakistan has refused to learn from its mistakes of 1971 which led to the dismemberment of the country. It continues to repeat them. If it fails to open its eyes, it could face another breakaway portion in a short time.