Why hesitation in appointing a CDS Chanakya Forum 28 Jan 2022
देश के पहले रक्षा प्रमुख (सीडीएस) जनरल बिपिन रावत की 08 दिसंबर 2021 को हेलीकॉप्टर दुर्घटना में हुई दुखद मृत्यु ने उन सुधारों को धीमा कर दिया, जो सशस्त्र बलों में हो रहे थे। सीडीएस के रूप में जनरल रावत ने स्वतंत्रता के बाद से सशस्त्र बलों द्वारा किए जा रहे सबसे बड़े पुनर्गठन थिएटर कमांड को लागू करने के लिए अपनाए जा रहे कार्यों के बारे में हर सार्वजनिक संबोधन में देश को अवगत कराया था। कई लोगों के विपरीत विचारों के बावजूद वह इन सुधारों को आगे बढ़ा रहे थे, क्योंकि उनका मानना था कि राष्ट्र को भविष्य की चुनौतियों का सामना करने के लिए इनकी जरूरत है । जनरल रावत अपने कार्यों को आगे बढ़ाने के लिए एक बेहतरीन स्थिति में थे क्योंकि राजनीतिक नेतृत्व को उन पर और उनकी क्षमता पर पूरा भरोसा था।
रक्षा मंत्रालय में सैन्य मामलों के विभाग (डीएमए) के प्रमुख के रूप में, उन्होंने सेवा विशिष्ट मुद्दों को नौकरशाही नियंत्रण से दूर करना शुरू कर दिया था, जिसकी बहुत आवश्यकता थी। डीएमए ने मौजूदा नौकरशाही प्रक्रियाओं को बदल दिया था जो दशकों से प्रचलन में थीं और जिसने सशस्त्र बलों को निराश करने का काम किया था। रक्षा सचिव के अधीन काम करनेवाला एक अतिरिक्त सचिव वर्तमान में उनके पद को संभाल रहा है। यह सबसे खराब काम है, जो सरकार इस संदर्भ में कर सकती है, क्योंकि यह इन सुधारों को पीछे कर देगी। सरकार द्वारा उनके उत्तराधिकारी की नियुक्ति में जितना अधिक समय लगेगा, व्यवस्था उतनी ही खराब होगी।
उनके प्रतिस्थापन की घोषणा में देरी के परिणामस्वरूप सेना प्रमुख को सीडीएस के रूप में कार्य करने वाला सबसे वरिष्ठ सेवा प्रमुख बना दिया गया है। रिक्त पद को भरने वाली यह अस्थायी व्यवस्था अप्रभावी है। सीडीएस के रूप में स्थायी अध्यक्ष की अनुपस्थिति में संयुक्त मामलों पर निर्णय लेने वाली चीफ ऑफ स्टाफ कमेटी (सीओएससी), बलों के बीच असहमति को दूर करने के लिए विवादास्पद मुद्दों की अनदेखी करेगी।
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सीमित बजट के युग में जो केंद्रीय क्षमता निर्माण प्रक्रिया आवश्यक है, उसे भी स्थायी अध्यक्ष के बिना नुकसान होगा, सीओएससी प्राथमिकताओं पर निर्णय लेने में असमर्थ होगी, क्योंकि क्षमता वृद्धि पर प्रत्येक सेना के अपने विचार और धारणाएं होती हैं। यह फिर उस युग में चला जाएगा जब नौकरशाहों द्वारा सैन्य मामलों के बारे में कोई जानकारी नहीं होने के कारण सेनाओं की मांगों को संकलित और निर्णय लेने के लिए रक्षा मंत्रालय को पेश किया जाता था। एक नया सीडीएस नियुक्त करने में जितना अधिक विलंब होगा, उतना ही सिस्टम पूर्व-सीडीएस अवधि में चलता जाएगा।
यह भी कहा गया है कि सीडीएस की कोई परिचालन भूमिका नहीं है और इसलिए नियुक्ति में देरी स्वीकार्य है। इससे अधिक अतार्किक बात कोई और नहीं हो सकती। भारत-चीन गतिरोध के चरम पर लद्दाख में निगरानी और पूर्व चेतावनी के लिए नौसेना की हवाई संपत्तियों को भेजना सीडीएस के सीधे हस्तक्षेप का ही परिणाम था। जरूरत पड़ने पर नौसेना के मिग 29 लड़ाकू विमानों को भी शामिल करने के लिए तैयार किया गया था। संकट के समय में सेनाओं के बीच समन्वय की जिम्मेदारी सीडीएस की होती है। एकल बिंदु सैन्य सलाहकार के रूप में, वे राजनीतिक सत्ता के साथ लगातार संपर्क में थे और अधिकांश निर्णयों और घोषणाओं के लिए जिम्मेदार थे। किसी के शीर्ष पर नहीं होने से, सभी सेवाओं के संसाधनों का समन्वय और उपयोग करने में समस्याओं का सामना करना पड़ेगा। सीडीएस की नियुक्ति में देरी सशस्त्र बलों को कई तरह से प्रभावित करेगी।
ऐसी चर्चा थीं कि सरकार के पास अगले सीडीएस की नियुक्ति के लिए व्यापक विकल्प हैं, जिनमें हाल ही में सेवानिवृत्त हुए अधिकारी भी शामिल हैं। यह गलत है क्योंकि एक बार सेवानिवृत्त होने के बाद कानूनी आधारों के बिना किसी व्यक्ति को बहाल नहीं किया जा सकता। सीडीएस को सशस्त्र बलों का एक सेवारत सदस्य होना चाहिए और राष्ट्रीय एजेंडा को आगे बढ़ाने में सक्षम होने के लिए सेवा में सबसे वरिष्ठ होना चाहिए। चयन के विकल्प के लिए वर्तमान सेवारत सेना प्रमुखों पर ही विचार किया जाना चाहिए। इन्हें वर्तमान सरकार द्वारा उचित विचार-विमर्श के बाद नियुक्त किया गया है, और इसलिए सीडीएस में उनकी पदोन्नति में कोई देरी नहीं हो सकती। सीडीएस की नियुक्ति की पुष्टि भी केवल दो व्यक्तियों पर निर्भर करती है, जो कैबिनेट की नियुक्ति समिति बनाते हैं, प्रधान मंत्री और गृह मंत्री। इसलिए, अगले सीडीएस की घोषणा करने के लिए कोई कानूनी बाध्यता नहीं होने के बावजूद, देरी चिंताजनक है।
ऐसा प्रतीत होता है कि सरकार अगले रक्षा प्रमुख के रूप में सही व्यक्ति की प्रतीक्षा करने के इरादे से घोषणा को रोक रही है। किसी वरिष्ठ को दरकिनार किए बिना या सशस्त्र बलों के राजनीतिकरण किये जाने की आलोचना को दरकिनार करने के लिए सरकार ऐसा कर सकती है क्योंकि पूर्व में ऐसा हुआ है। जब जनरल बिपिन रावत को उनके दो वरिष्ठ अधिकारियों के स्थान पर सेना प्रमुख के रूप में नियुक्त किया गया था, तो राजनीतिकरण के आरोप लगे थे। साथ ही एनएसए, अजीत डोभाल के साथ जनरल बिपिन रावत की निकटता को भी बताया गया था। चुनाव नजदीक हैं, ऐसे में सरकार किसी भी विवाद में पड़ना नहीं चाहेगी।
सरकारी हलकों में चर्चा है कि सीडीएस की नियुक्ति के लिए सेना प्रमुख सबसे आगे चल रहे हैं। यह सच होने की स्थिति में, सरकार संभवत: किसी विशिष्ट व्यक्ति के अगले रक्षा प्रमुख के रूप में स्थान पाने की प्रतीक्षा कर रही होगी। यदि सरकार की यही मंशा है, तो इसके लिए अगले महीने सीडीएस की कोई घोषणा किए जाने की संभावना नहीं है। इसके फलस्वरूप सुधार कार्य पीछे हो सकते हैं, जबकि रक्षा मंत्री ने दावा किया था कि सुधार कार्य तय कार्यक्रम के अनुसार आगे बढ़ेगा।
इसमें कोई शक नहीं है कि जनरल बिपिन रावत द्वारा शुरू किए गए सुधार कार्यों का अंत नहीं होगा। लेकिन उनके स्थान पर किसी के चयन की घोषणा में देरी से उनके द्वारा निर्धारित प्रक्रियाओं में विलंब की भरपाई हो पाएगी। उनके द्वारा शुरू अध्ययनों और परियोजनाओं के धीमा पड़ने पर यह संदेश जाएगा कि सरकार थिएटर कमांड बनाने की अपनी इच्छा के प्रति ईमानदारी नहीं बरत रही है। इससे यह भी संदेश जायेगा कि सरकार सीडीएस की नियुक्ति को राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण नहीं मानती।
The tragic helicopter crash on 08 Dec 2021, which led to the demise of the nation’s first CDS, General Bipin Rawat, appears to have slowed reforms which the armed forces had been undertaking. General Rawat, as the CDS, had continuously updated the nation in every public address on the approach being adopted for implementing theatre commands, the largest restructuring undertaken by the armed forces since independence. It was evident that he was pushing these reforms because he believed that the nation needed them to face future challenges, despite contrary views of many. General Rawat was in a unique position as the political leadership had utmost confidence in him and in his abilities to deliver.
As the head of the Department of Military Affairs (DMA) in the MoD, he had begun moving service specific issues away from bureaucratic control, which was much needed. The DMA had altered existing bureaucratic procedures which had been in vogue for decades and had frustrated the armed forces. An additional secretary, currently handling his position, functioning under the defence secretary, is the worst that the government could do, as it would push these reforms back. The longer the government takes to appoint his successor the more the system would change for the worse.
The delay in announcing his replacement has resulted in the army chief as the senior most service chief officiating as the CDS. This temporary stop gap arrangement is ineffective. The Chiefs of Staff Committee (COSC), which continues to take decisions on joint matters, would, in the absence of a permanent chairman as the CDS, ignore contentious issues to offset disagreements between forces.
It was General Rawat who was pushing the COSC on implementing the government’s agenda of creating theatre commands, despite objections. The studies, which were initiated to reform the process, may be continuing, but with no CDS to push, monitor and resolve disagreements, their pace would have reduced. The reforms which were in the process of moving forward may be stalling.
The central capability building process, which is essential in the age of limited budgets would also suffer as without a permanent chairman, the COSC would be unable to take a decision on priorities, as each service has its own views and perceptions on capability enhancement. It would go back to the era when demands of the services were compiled and projected to the MOD for decision making, by bureaucrats, with no idea of military matters. The longer the delay in appointing a new CDS the more the system would revert to a pre-CDS period.
It has been stated that the CDS has no operational role and hence delay in appointment is acceptable. Nothing could be more illogical. The movement of naval air assets for monitoring and early warning into Ladakh at the peak of the Indo-China standoff was the result of direct intervention of the CDS. Naval MIG 29 fighters were also prepared for induction in case the situation warranted. Coordination between the forces in critical times is the responsibility of the CDS. As a single point military advisor, he was in constant contact with the political authority and behind most decisions and announcements. With no one at the helm, coordination and utilizing resources of all services would face a setback. Delay in appointing a CDS will impact the armed forces in multiple ways.
There were comments that the government has wide options to appoint the next CDS including from those recently retired. This is wrong as an individual once retired cannot be reinstated except on legal grounds. The CDS has to be a serving member of the armed forces and to be able to push the national agenda must be amongst the senior most in service. This restricts the choice to current serving chiefs. These have been appointed by the current government after due deliberation, and hence their elevation to CDS merits no delay. Confirmation of the appointment of CDS also hinges on only two individuals, who form the appointments committee of the cabinet, the prime minister and the home minister. Hence, despite no legal binding to announce the next CDS, the delay is perplexing.
It appears that the government is withholding the announcement with the intention of waiting for the right individual to be in place as the next service chief, without upsetting the applecart or bypassing anyone senior, which may draw flak on politicization of the armed forces as has happened earlier. When General Bipin Rawat was appointed as the army chief superseding two officer’s senior to him, there were accusations of politicization as also the proximity of General Bipin Rawat to the NSA, Ajit Doval. With elections round the corner, the government would not desire to be involved in any controversy.
Talk within government circles is that the army chief is the front runner for the appointment of CDS. In the event of this being true, then the government may possibly be waiting for a specific individual to fall into place as the next service chief. If this is the government’s intention, then it is unlikely that any announcement of a CDS would be made for the next month, an action which may push reforms back, despite the defence minister claiming that transformation would move as per schedule.
There is no doubt that reforms initiated by General bipin Rawat would not end. However, delay in announcing his replacement would offset procedures he had set in place, slow down ongoing studies and project the message that the government is not sincere in its desire for creating theatre commands. It will also convey that the government does not assume the appointment of a CDS to be critical for national security.