India’s steps towards restoration of peace Amar Ujala 21 Dec 2022
हाल ही में अमेरिकी सीआईए प्रमुख बिल बर्न्स ने एक इंटरव्यू में कहा कि यह बहुत उपयोगी रहा कि चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग एवं भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने परमाणु हथियारों के उपयोग के बारे में अपनी चिंताएं जताईं। मुझे लगता है कि रूस पर भी इसका प्रभाव पड़ा है। उन्होंने आगे कहा कि रूस की परमाणु युद्ध की धमकी केवल डराने के लिए थी। पुतिन पहले ही साफ कर चुके हैं कि यूक्रेन में उनका ‘विशेष सैन्य अभियान‘ कुछ और समय तक जारी रहेगा। गौरतलब है कि रूसी मानवाधिकार परिषद को संबोधित करते हुए, पुतिन ने कहा था कि रूस ‘सभी उपलब्ध साधनों‘ के साथ लड़ेगा। उन्होंने परमाणु हथियारों के संभावित उपयोग से इनकार नहीं किया था।
इस महीने की शुरुआत में बिल बर्न्स ने अंकारा में अपने रूसी समकक्ष सर्गेई नरेश्कीन से मुलाकात की। व्हाइट हाउस के अनुसार, दोनों के बीच बातचीत अमेरिका द्वारा परमाणु हथियारों के इस्तेमाल पर अपनी चिंताओं और चेतावनी जताने तक सीमित थी। अक्तूबर में प्रधानमंत्री मोदी ने यूक्रेनी राष्ट्रपति व्लादिमीर जेलेंस्की से बात की थी और इस बात पर जोर दिया कि युद्ध का कोई सैन्य समाधान नहीं है और भारत की इच्छा शांति प्रयासों में योगदान देने की है। उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया था कि परमाणु हथियारों के खतरे के दूरगामी प्रभाव होंगे। पांच नवंबर को एक लेख में न्यूयॉर्क टाइम्स ने कहा कि ‘पूरे युद्ध के दौरान भारत ने ऐसे कुछ महत्वपूर्ण क्षणों (परमाणु संयंत्रों पर रूसी हमलों को रोकना) के दौरान चुपचाप सहायता की है।‘ इसमें आगे कहा गया है कि यूक्रेनी अनाज के जहाज को स्वीकार करने के लिए रूस पर दबाव डालने में ‘भारत ने पर्दे के पीछे महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।‘ इसमें यह भी दावा किया गया है कि भारत ने ही रूस को जपोरिझिया परमाणु संयंत्र पर हमला करने से रोका था।
विगत 16 दिसंबर को प्रधानमंत्री मोदी ने पुतिन से भी बात की, जिसमें मोदी ने एक बार फिर दोहराया कि बातचीत और कूटनीति को आगे बढ़ाकर ही इसका समाधान निकल सकता है। यह मोदी ही थे, जिन्होंने सितंबर में शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के शिखर सम्मेलन से इतर पुतिन से कहा था कि यह युद्ध का समय नहीं है। भारत इस बात पर जोर देता रहा है कि वार्ता फिर से शुरू होनी चाहिए। जी-20 और एससीओ के अध्यक्ष के रूप में भारत को संवाद को आगे बढ़ाने में भूमिका निभानी है।
किसी भी पश्चिमी देश ने जेलेंस्की पर वार्ता के लिए उस तरह से दबाव नहीं डाला, जिस तरह से भारत पुतिन पर दबाव बना रहा है। जेलेंस्की ने बातचीत शुरू करने से इनकार कर दिया, मुख्यतः इसलिए कि उसे पश्चिमी सहायता और समर्थन मिल रहा है। दुनिया जानती है कि कीव कभी भी क्रीमिया सहित अपने क्षेत्रों को फिर से हासिल नहीं कर सकता है, जिसे रूस ने 2014 में हड़प लिया था। तुर्किये में यूक्रेन-रूस वार्ता को अमेरिका और उसके सहयोगियों के दबाव के कारण बंद कर दिया गया था। पश्चिम ने कीव को सहायता प्रदान करते हुए क्रेमलिन पर प्रतिबंध और दबाव डाला, जिससे शांति सुनिश्चित नहीं होगी।
इसमें कोई संदेह नहीं है कि रूस ने युद्ध शुरू किया, लेकिन उसकी चिंताओं को न तो स्वीकार किया गया और न ही संबोधित किया गया, जिससे उसके पास कोई विकल्प नहीं रह गया था। यूक्रेन नाटो की ओर से छद्म युद्ध लड़ रहा है, जबकि उसके नागरिक युद्ध की कीमत चुका रहे हैं। रूस के साथ युद्ध में शामिल होने की तुलना में यूक्रेन को सशस्त्र करना अमेरिका के लिए एक सस्ता विकल्प है, क्योंकि युद्ध से अमेरिकियों का जीवन खतरे में पड़ जाएगा। अंतत: यूक्रेन की भावी पीढ़ियों को अमेरिका से प्राप्त हथियारों और धन की कीमत चुकानी होगी।
वैश्विक स्तर पर इस युद्ध को लेकर दो गुट हैं, जिनके विचार एकदम विपरीत हैं। पहले समूह में पश्चिमी देश शामिल हैं, जो चाहते हैं कि रूस को प्रतिबंधित करने और अलग-थलग करने के साथ-साथ छद्म युद्ध जारी रहे, जिससे यूरोप रूसी सैन्य खतरे से सुरक्षित रहे। उनका मानना है कि यह रूस-चीन गठबंधन को भी कमजोर करेगा, जिससे चीन पश्चिमी और एशियाई गठबंधनों का सामना करने के लिए अकेला पड़ जाएगा। अमेरिका ने परमाणु हथियारों के इस्तेमाल के खिलाफ रूस को धमकी दी, लेकिन सौहार्दपूर्ण समाधान के लिए जेलेंस्की पर वार्ता के लिए दबाव डालने से इनकार कर दिया। वे क्रेमलिन को अलग-थलग करने की उम्मीद में लगातार रूस से व्यापार करने वाले भारत जैसे देशों पर निशाना साध रहे हैं। इस प्रकार, उनका अंतिम उद्देश्य रूस है, जबकि शांति का मार्ग यूक्रेन से होकर गुजरता है। पश्चिम शांति प्रक्रिया को आगे बढ़ाने की जल्दी में नहीं है।
दूसरे समूह में युद्ध से परोक्ष रूप से प्रभावित और शांति चाहने वाले राष्ट्र शामिल हैं। इस समूह में आमतौर पर भारत के नेतृत्व वाले एशियाई और अफ्रीकी देश शामिल हैं। युद्ध ने तेल, खाद्यान्न, उर्वरक और खनिजों सहित अन्य रूसी निर्यातों को प्रभावित किया है, आर्थिक रूप से कमजोर देशों के वित्तीय संकट को बढ़ाया है और जनता की पीड़ा में वृद्धि की है। भारत, जो दोनों समूहों के करीब है, शांति वार्ता और विश्व व्यवस्था बहाल करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने का प्रयास कर रहा है। हालांकि इसके लिए उसे पश्चिम के सहयोग की जरूरत है, जिसका अभाव है। पश्चिम ही वार्ता की अंतिम स्थिति तय कर सकता है। वार्ता वास्तविकता पर आधारित होनी चाहिए, क्योंकि रूस न तो क्रीमिया को खाली करेगा और न ही वर्तमान में अपने नियंत्रण वाले कुछ क्षेत्रों को। युद्धविराम लागू करने के साथ बातचीत शुरू करने का अर्थ यूक्रेनी बुनियादी ढांचे के विनाश और जनता की पीड़ा को रोकना भी होगा।
फिलहाल अमेरिका और उसके सहयोगियों का जोर प्रतिबंधों को बढ़ाने और रूस को अलग-थलग करने पर नजर आ रहा है। संघर्ष को समाप्त करने के लिए वार्ता शुरू करने का कोई उल्लेख नहीं किया गया है। ऐसे में भारत शांति के अभियान में खुद को अलग-थलग पा सकता है। हालांकि, उसे दोनों देशों के साथ अपने संवाद बनाए रखना चाहिए। किसी समय पश्चिम को अपनी गलती का एहसास जरूर होगा।
The US CIA chief, Bill Burns stated in a recent interview, ‘I think it has also been very useful that Xi Jinping and Prime Minister Modi in India have also raised their concerns about the use of nuclear weapons as well. I think that’s also having an impact on the Russians.’ He added that Russia’s threat of nuclear war was only meant to intimidate. Putin has already made it clear that his ‘special military operation’ in Ukraine would continue for some more time. While addressing Russia’s Human Rights Council, Putin added that Russia will fight with ‘all available means at their disposal.’ He implied possible use of nuclear weapons.
Earlier this month Bill Burns met his Russian counterpart, Sergey Naryshkin, in Ankara. As per the White House, discussions between the two was limited to the US conveying its concerns and warning on use of nuclear weapons. Similar talks had earlier taken place between the US National Security Advisor and his Russian counterpart.
In Oct, PM Modi spoke to Ukrainian President, Volodymr Zelensky and emphasized that there is no military solution to the war and India’s willingness to contribute towards peace efforts. He also highlighted that endangerment of nuclear facilities would have far reaching consequences. In an article of 05 Nov, the New York Times stated, ‘Throughout the war, India has quietly assisted during a few pivotal moments like these (stopping Russian attacks on nuclear facilities).’ It went on to add that ‘India played an important behind-the-scenes role’ to pressure Russia to accept shipment of Ukrainian grain. It also claimed that it was India which asked Russia to ‘back off’ from shelling the Zaporizhzhia nuclear plant.
On 16th December, PM Modi also spoke to President Putin. The official release from the talks mentioned that PM Modi reiterated his call for dialogue and diplomacy as the only way forward. It was Modi who had stated to Putin, during their meeting on the sidelines of the SCO (Shanghai Cooperation Organization) summit in Sept, that this is not an era of war. India has been insisting that talks must resume. As President of the G 20 and the SCO India has a role to play in pushing for dialogue. There were reports, which were rebuffed, that the annual summit between the leaders of India and Russia was cancelled due to the ongoing Russo-Ukraine war. The major reason was scheduling issues.
No western nation has pushed Zelensky for talks in the manner Putin is being pressured by India. Zelensky refuses to commence dialogue, primarily because western aid and support continues to flow. He believes that only by continuing his offensive against Russia will aid flow. The world is aware that Kiev can never regain its territories including Crimea which Russia annexed in 2014. Ukraine-Russia talks in Turkey were called off due to pressure from the US and its allies.
The west sanctions and pressures the Kremlin while providing aid to Kiev, an act which will ensure that peace remains distant. There is no doubt that Russia commenced the war, however its concerns were neither accepted nor addressed, leaving it with little choice. Ukraine is fighting a proxy war for NATO while its citizens continue to pay the price. Arming Ukraine is a far cheaper option for the US than engaging in a conflict with Russia which would endanger American lives. Ultimately future Ukrainian generations will have to repay the US for the arms and funds received. There are very few sane nations which seek an end to hostilities.
Globally, there are two groups on the war, views of both are diametrically opposite. The first group comprises of the west which desires that proxy war continues alongside sanctioning and isolation of Russia, thereby securing Europe from Russian military threat. They believe this will also weaken the Russo-China alliance leaving China alone to face western and Asian alliances. The US threatens Russia against use of nuclear weapons but refuses to push Zelensky for talks to arrive at an amicable solution. They continue to target Russian allies, such as India, for its trade with Russia, hoping to isolate the Kremlin. Thus, the ultimate objective is Russia, while the path passes through Ukraine. The west is in no rush to push for peace.
The other group comprises of nations indirectly impacted by the war and desiring peace. This groups generally includes Asian and African nations led by India. The war has impacted cost of oil, food grains and other Russian exports including fertilizer minerals, adding to financial woes of economically weaker nations and increasing suffering of masses. India, which is close to both camps is attempting to play a key role in negotiating peace and restoring world order.
However, for this it needs western cooperation, which is lacking. It is the west which could dictate the end state of negotiations, which Zelensky would mouth, as they control Ukrainian finances. This should be based on reality as Russia would neither vacate Crimea nor few regions presently under its control. Commencing talks with imposition of a ceasefire would imply preventing further destruction of Ukrainian infrastructure as also stopping the suffering of the masses.
Currently, the emphasis of the US and its allies appear to be on increasing sanctions and isolating Russia. There has been no mention on conduct of talks to end the conflict. The west may praise India and PM Modi’s approach and words, however from their end they prefer the proxy war continues and hope Russia is weakened to the level that it is no more a threat to Europe. Russia has the capacity to continue the conflict even if it reaches a stalemate. In such a scenario India may find itself isolated pushing for peace. However, it must continue exploiting its network with both nations. At some stage the west would realize the folly of their approach.