The Sudanese civil war (सत्ता संग्राम: बदहाली ने सूडान को गृहयुद्ध में झोंका, समन्वय और सहयोग से होगी संकटग्रस्त लोगों की वापसी) Amar Ujala 26 Apr 2023

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The Sudanese civil war (सत्ता संग्राम: बदहाली ने सूडान को गृहयुद्ध में झोंका, समन्वय और सहयोग से होगी संकटग्रस्त लोगों की वापसी) Amar Ujala 26 Apr 2023

          बीते 15 अप्रैल को सूडान के रक्षा बलों के दो गुटों में गृहयुद्ध छिड़ गया, हालांकि दोनों गुट सहयोगी थे और मिलकर सत्ता साझा कर रहे थे। एक तरफ वर्तमान नेता, अब्देल फत्ताह अलबुरहान के नेतृत्व में सूडान की सशस्त्र सेना है, तो दूसरी तरफ मोहम्मद हमदान दगालोहेमेदतीअर्धसैनिक रैपिड सपोर्ट फोर्स (आरएसएफ) का नेतृत्व कर रहे हैं। हाल के वर्षों में सूडान ने भारी आंतरिक उथलपुथल देखी है। दक्षिण सूडान वर्ष 2011 में सूडान से अलग हो गया और सूडान के अधिकांश तेल क्षेत्रों पर कब्जा कर लिया, जिससे उसकी अर्थव्यवस्था प्रभावित हुई।


वर्ष 2019 में हिंसक विरोध के बाद, मानवता के खिलाफ अपराधों के लिए अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायालय का एक वांछित युद्ध अपराधी उमर अलबशीर की 30 साल पुरानी तानाशाही को एक सैन्य तख्तापलट में उखाड़ फेंका गया था। बशीर अभी खार्तूम जेल में बंद है। उसके कुछ ही दिनों के भीतर तख्तापलट करने वाले नेता ने इस्तीफा दे दिया और अब्देल फत्ताह अलबुरहान नेहेमेदतीके साथ सत्ता साझा की।

दोनों के बीच मतभेद सूडान को एक गृहयुद्ध की ओर ले गया, जिसमें 400 से अधिक लोग मारे गए, हजारों घायल हुए, अस्पताल नष्ट हो गए और पड़ोस युद्ध के मैदान में तब्दील हो गया। एक करोड़ की आबादी वाले खार्तूम में पलायन देखा जा रहा है। वहां भोजन और पानी की कमी के कारण मानवीय संकट पैदा हो गया है।

मौजूदा गृहयुद्ध का कारण सेना की अधिक निगरानी और नियमित सशस्त्र बलों में आरएसएफ के एकीकरण की मांग है। सेना से यह भी मांग की जा रही है कि वह कृषि और अन्य विभिन्न उद्योगों की अपनी जमीन सौंप दे, जिस पर काम करने के प्रति वह अनिच्छुक है। सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात और मिस्र का सूडान में खासा प्रभाव है और वे दोनों गुटों के बीच संघर्ष विराम वार्ता कराने का प्रयास कर रहे हैं।

पड़ोसी मुल्क चाड, दक्षिण सूडान के साथ मिस्र में भी बड़े पैमाने पर प्रवासन से इस क्षेत्र में अस्थिरता बढ़ना तय है। युद्धविराम के आह्वान का सीमित प्रभाव पड़ा है। इसने वैश्विक शक्तियों को सूडान से अपने दूतावास कर्मचारियों को वापस बुलाने के लिए प्रेरित किया। अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, इटली, कनाडा और स्पेन ने अपने कर्मचारियों को वापस बुलाने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। सूडान में अहम भूमिका निभाने वाले तुर्किये ने सड़क मार्ग से अपने कर्मचारियों को बाहर निकाला। संयुक्त राष्ट्र के वाहनों और बसों ने विदेशियों को खार्तूम से लाल सागर पर सूडान बंदरगाह की ओर पहुंचाया।

कुछ देशों ने सूडान में फंसे अपने नागरिकों की उपेक्षा करते हुए अपने दूतावास के कर्मियों को बाहर निकाला। फंसे हुए ब्रिटिश और अमेरिकी नागरिकों ने अपनी सरकारों पर उन्हें छोड़ने का आरोप लगाया है। पश्चिमी देश सिर्फ अपने दूतावास कर्मचारियों को वापस बुला रहे हैं, क्योंकि उनका मानना है कि उस देश में अपने हिसाब से काम करने वाले अन्य लोग अपने लिए काम करते हैं। कुछ देशों ने अपने नागरिकों को भी वहां से बाहर निकाला है। भारत के लोगों को फ्रांस और सऊदी अरब के रास्ते निकाला गया है, हालांकि उनकी संख्या कम है।

प्रत्येक संघर्ष क्षेत्र में भारतीय धारणा पश्चिम के विपरीत रही है। भारतीय दूतावास के कर्मचारी सबसे अंत में बाहर निकलते हैं, और नागरिकों को प्राथमिकता दी जाती है। विदेश मंत्रालय ने बयान जारी कर कहा है, ‘हम सूडान में उभरती जटिल सुरक्षा स्थिति की बारीकी से निगरानी कर रहे हैं। हम सूडान में फंसे हुए भारतीयों की सुरक्षित निकासी के लिए विभिन्न साझेदारों से भी घनिष्ठ समन्वय कर रहे हैं।खार्तूम स्थित भारतीय दूतावास अपने नागरिकों को निकालने के लिए संयुक्त राष्ट्र, सऊदी अरब, मिस्र, संयुक्त अरब अमीरात और अन्य देशों के साथ तालमेल कर रहा है। सूडानी हवाई क्षेत्र बंद होने के चलते तेजी से निकासी के लिए विमानों की आवाजाही संभव नहीं है।

दूतावास ने भारतीय निवासियों से घर के अंदर रहने का अनुरोध किया है और कहा है कि जमीनी स्थिति के आधार पर उनकी निकासी का प्रबंध करेगा, जो अप्रत्याशित बनी हुई है। भारत उन कुछ देशों में से है, जिनका दूतावास सूडान में अपने नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए काम कर रहा है। 24 अप्रैल को भारत सरकार ने सूडान से अपने नागरिकों को निकालने के लिएऑपरेशन कावेरीशुरू किया।

सूडान में लगभग 3,000 भारतीय नागरिक हैं, जिनमें से एक की गोली लगने से मौत हो गई। पहले कदम के रूप में भारत ने जेद्दाह में भारतीय वायुसेना के दो सी-130 विमान तैनात किए और निकासी में मदद के लिए एक नौसैनिक जहाज सूडान बंदरगाह पहुंचा। खार्तूम से सूडान बंदरगाह की दूरी 850 किलोमीटर है, जहां पहुंचने में 35 घंटे लगते हैं, लेकिन पूरे सूडान में जारी संघर्ष के कारण आवाजाही कठिन है। ऐसा लगता है कि भारत की योजना अपने नागरिकों को पहले सूडान बंदरगाह ले जाने, फिर वहां से उन्हें जहाज द्वारा सऊदी अरब ले जाने और फिर वहां से हवाई मार्ग से भारत लाने की है। जहाज फिर अगले समूह को स्थानांतरित करने के लिए बढ़ेगा।

ताजा जानकारी के अनुसार, 500 भारतीय नागरिक आगे की निकासी के लिए सूडान बंदरगाह पहुंचे हैं। अभी संयुक्त राष्ट्र द्वारा प्रेरित 72 घंटे का युद्धविराम प्रभावी हो गया है। सभी देश अपने कर्मियों की सुरक्षित निकासी के लिए इसका फायदा उठाएंगे, जिनमें भारत भी एक है। संकट क्षेत्रों में फंसे अन्य देशों के नागरिकों की सहायता करने में भारत ने कभी संकोच नहीं किया। इसने हमेशा बांग्लादेश, नेपाल और अन्य मित्र राष्ट्रों के नागरिकों की मदद की है और आगे भी ऐसा करेगा।

यदि हवाई अड्डा खुल जाता है, तो भारत तेजी से नागरिकों की निकासी कर सकता है, अन्यथा इसे सड़क मार्ग से करना होगा, जो धीमा होगा। युद्ध क्षेत्र से नागरिक आबादी के भागने और युद्धरत बलों द्वारा संभावित हमलों के कारण सड़क जाम होगा। हर संघर्ष विराम का फायदा उठाकर भारतीयों को बाहर निकाला जाएगा। याद रखना चाहिए कि गृहयुद्ध के माहौल में अराजतकता के कारण काम करना मुश्किल, जोखिम भरा और समय लेने वाला होता है। हमेशा जनहानि की आशंका बनी रहती है। निकासी की सफलता के लिए समन्वय और सहयोग महत्वपूर्ण होगा।

          On 15th Apr civil war broke out between two factions of Sudan’s defence forces, both of whom were till then allies. One side was Sudan’s armed forces led by the current leader, Abdel Fattah al-Burhan, and the other was Mohamed Hamdan Dagalo ‘Hemedti’ led Paramilitary Rapid Support Forces (RSF). Both shared power till then. Sudan has witnessed immense internal turmoil in recent years. South Sudan split from Sudan in 2011 and took over most of Sudan’s oil fields, impacting its economy.

In 2019, post violent protests, dictator for 30 years and a wanted war criminal as also for crimes against humanity, by the International Criminal Court, Omar al-Bashir, was overthrown in a military coup. Bashir is currently lodged in a Khartoum prison. Within days, the leader of the coup resigned and Abdel Fattah al-Burhan assumed control sharing power with ‘Hemedti’.

Differences arose between the two leading to the commencement of a civil war, in which over 400 have died, thousands injured, hospitals destroyed and neighbourhoods turned into battlefields. Khartoum which has a population of 10 million is witnessing an exodus as airstrikes and artillery barrages take their toll. There are shortages of food and water resulting in a humanitarian crisis.

The reason behind the current civil war is the civilian demand, backed by the RSF, for greater oversight of the military and the integration of the RSF into the regular armed forces. There is also a demand for the army to hand over its lucrative holdings in agriculture and various other industries, which it is loath to do. Saudi Arabia, UAE and Egypt have major influence in the country and have been attempting to negotiate a ceasefire between the warring sides.

With large scale migration into neighbouring Chad, South Sudan as also Egypt, instability in the region is bound to increase. Neighbouring countries and world powers calls for ceasefire have had limited impact with it being broken almost immediately with both sides blaming the other. This prompted global powers to withdraw their embassy staff from the country. The US employed three Chinook helicopters from its base in Djibouti to fly out about 100 members of its embassy and their families from Khartoum. It also announced the closure of its embassy. A similar announcement was made from the British foreign office in London, which also withdrew its staff.

France, Germany, Italy, Canada and Spain have also initiated action to withdraw their embassy personnel from Khartoum. Turkey, which plays a major role in Sudan moved its embassy staff by road. UN vehicles and busses transported foreigners from Khartoum towards Port Sudan on the Red Sea.

Some nations pulled out their embassy personnel, ignoring their residents who remain stranded within Sudan. Stranded British and American nationals have, in calls to multiple media outlets, accused their governments of abandoning them. The western philosophy has been withdrawing embassy personnel, while others, working in the country on their own accord, fend for themselves. Some countries have withdrawn nationals of other countries too. Indians have been evacuated by France and Saudi Arabia, though numbers are miniscule.

The Indian perception has been the opposite in every conflict zone. Its embassy personnel have been amongst the last to leave, with nationals being given priority. The MEA statement on the situation in Sudan read, ‘We are closely monitoring the complex and evolving security situation in Sudan. We are also coordinating closely with various partners for the safe movement of those Indians who are stranded in Sudan and would like to be evacuated.’ The Indian embassy in Khartoum is coordinating with the UN, Saudi Arabia, Egypt, UAE and others to enable evacuation of Indian nationals. With the Sudanese airspace closed, movement of aircraft into the country for faster evacuation is not possible.

The embassy has requested Indian residents to stay indoors and stated that it would coordinate their evacuation depending on the emerging ground situation, which remains unpredictable. India is amongst the few nations whose embassy continues to function and is working at ensuring safety of its nationals in Sudan. On 24th April, the Indian government launched ‘Operation Kaveri’ to evacuate its citizens from Sudan. Minister of State for External Affairs, V Muraleedharan, was nominated to oversee rescue operations.   

There are approximately 3000 Indian nationals in Sudan, of which one was killed by a stray bullet. As a first step, India deployed two IAF C-130 aircraft in Jeddah and a naval ship has arrived in Port Sudan to support evacuation. Movement from Khartoum to Port Sudan, located at a distance of 850 kms and a 35-hour drive, remains difficult due to the prevailing fighting spreading across the country. The Indian plan appears to be to move its citizens to Port Sudan, transport them by ship to Saudi Arabia and then by air to India. The ship would then relocate to move the next group. As per latest inputs 500 Indian nationals have arrived in Port Sudan for further evacuation.

Currently a 72 hours ceasefire, pushed by the UN, has come into effect, mainly to enable foreign nationals to leave Khartoum. All nations will exploit it to move their personnel to safety, India being one of them. India has never hesitated to assist other nationals trapped in trouble zones. It has always lent a helping hand to nationals of Bangladesh, Nepal and other friendly nations and will do so again.

In case the airport opens, India could resort to faster evacuation, otherwise it would have to be by road, which would be slow, hampered by road space, jammed due to fleeing civilian population from the battle zone and possible attacks by warring forces. Every break in fighting will be exploited to move Indian nationals to Port Sudan for onward movement. It must be remembered that during internal strife the situation remains fluid, unpredictable and chaotic. Operating in such an environment is difficult, filled with risks and time consuming. There is always the possibility of casualties occurring due to ongoing fighting. Coordination and cooperation will be key to success in evacuation.          

About the Author

Maj Gen Harsha Kakkar

Retired Major General Indian Army

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