Can India and Pak reconcile दो टूक शांति की पेशकश की वजह पाकिस्तान का विफल आर्थिक और सुरक्षा परिदृश्य; पहले बदले अपना रवैया Amar Ujala 07 Aug 2023

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Can India and Pak reconcile दो टूक: शांति की पेशकश की वजह पाकिस्तान का विफल आर्थिक और सुरक्षा परिदृश्य; पहले बदले अपना रवैया Amar Ujala 07 Aug 2023

          पिछले हफ्ते इस्लामाबाद में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने कहा किपाकिस्तान भारत के साथ वार्ता के लिए तैयार है, बशर्ते कि पड़ोसी देश महत्वपूर्ण मुद्दों पर गंभीर बातचीत के लिए तैयार हो, क्योंकि युद्ध अब कोई विकल्प नहीं है।उन्होंने आगे कहा कियह भी उतना ही जरूरी है कि हमारा पड़ोसी यह समझे कि जब तक शंकाएं दूर नहीं होतीं, तब तक हम सामान्य पड़ोसी नहीं बन सकते।इस साल यह दूसरी बार है, जब पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने बातचीत की पेशकश की है। इससे पहले विगत जनवरी में उन्होंने दुबई स्थित समाचार चैनल अल अरबिया को दिए इंटरव्यू में ऐसी ही बात कही थी।

भारतीय प्रवक्ता अरिंदम बागची ने इस पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा, ‘दोनों देशों के बीच किसी भी तरह के जुड़ाव के लिए आतंक और शत्रुता मुक्त माहौल अनिवार्य है।पाकिस्तान को लेकर भारत का हमेशा यही रुख रहा है किआतंकवाद और बातचीतसाथसाथ संभव नहीं है। शंघाई सहयोग संगठन के विभिन्न सत्रों में पाकिस्तान ने भारत पर कूटनीतिक लाभ के लिए आतंकवाद को हथियार बनाने का आरोप लगाया है। दूसरी तरफ भारत ने हर वैश्विक मंच और द्विपक्षीय वार्ता में सीमापार आतंकवाद का मुद्दा उठाया है।

अमेरिकी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता मैथ्यू मिलर से जब शहबाज शरीफ के बयान पर प्रतिक्रिया पूछी गई, तो उन्होंने कहा कि हम विभिन्न मुद्दों पर भारत और पाकिस्तान के बीच सीधी बातचीत का समर्थन करते हैं। लंबे समय से हमारा यही रुख है। कुछ पाकिस्तानियों ने इससे यह मतलब निकाला कि अमेरिका उनका समर्थन करता है, जबकि अमेरिका ने केवल यह स्पष्ट किया कि वह भारतपाकिस्तान के सभी मुद्दों को द्विपक्षीय मानता है।

फरवरी, 2021 में संघर्ष विराम पर हुई सहमति के बाद से नियंत्रण रेखा पर शांति है। हालांकि न्यूनतम स्तर पर घुसपैठ की कोशिशें जारी हैं। जबकि पाकिस्तान के ड्रग्सआतंकवाद के प्रयास आंशिक रूप से सफल हो रहे हैं। आतंकी गुटों में शामिल होने वालों की संख्या में भी कमी आई है। रिपोर्टों के मुताबिक, इस वर्ष मात्र सात युवक आतंकी गुटों में शामिल हुए, जिनमें से पांच को पहले ही खत्म कर दिया गया है। ऐसे में हताश होकर पाकिस्तान खालिस्तान का हौवा खड़ा करने की कोशिश कर रहा है, जिसके पीछे पंजाब को अस्थिर करने की साजिश है।

उसके ड्रोन पंजाब में नशीले पदार्थ एवं हथियार गिरा रहे हैं, और वह दुनिया भर में खालिस्तानी आंदोलन का समर्थन कर रहा है। भारत के लिए यह एक और खतरा है। पाकिस्तान की मौजूदा सरकार का कार्यकाल नौ अगस्त को खत्म हो रहा है और उसके बाद कार्यकारी प्रधानमंत्री कार्यभार संभालेंगे। कार्यकारी प्रधानमंत्री के पास कोई भी बड़ी वैश्विक वार्ता करने की शक्ति नहीं होगी। इधर भारत में भी अगले वर्ष की शुरुआत में लोकसभा के चुनाव होंगे। ऐसे में दोनों देशों में जब तक नई सरकार नहीं बन जाती, तब तक बातचीत की कोई संभावना नहीं है। लिहाजा सवाल उठता है कि पाकिस्तान के प्रधानमंत्री बारबार इस मुद्दे को क्यों उठा रहे हैं। यह एक चुनावी हथकंडा हो सकता है, जिसका मतलब यह है कि सत्तारूढ़ पाकिस्तान सरकार आगामी चुनावों में भारत के साथ रिश्तों को सुलझाने के वादे पर वोट मांगेगी। एक दूसरा तर्क यह है कि शहबाज पाकिस्तान की आगामी  सरकार के लिए एक रुख तय कर रहे हैं।

यह सच है कि शांति की पेशकश की एक वजह पाकिस्तान का विफल आर्थिक और सुरक्षा परिदृश्य है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के राहत पैकेज के बावजूद वह पुराने ऋणों को चुकाने के लिए कर्ज लेने के दुश्चक्र में फंसा हुआ है। धन जुटाने के लिए वह अपनी राष्ट्रीय संपत्तियोंहवाई अड्डों एवं बंदरगाहों को बेचना चाहता है। निकट भविष्य में इस परिदृश्य में बदलाव की संभावना नहीं है। लेकिन भारत के साथ व्यापार से उसे बहुत लाभ हो सकता है।

पाकिस्तान बिगड़ते सुरक्षा परिदृश्य का भी सामना कर रहा है। तहरीक तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) और इस्लामिक स्टेट खोरासान प्रांत के साथ बलूच स्वतंत्रता सेनानी पाकिस्तान की पश्चिमी सीमा पर सक्रिय हैं। आए दिन पाक चौकियों पर हमले और आत्मघाती विस्फोटों से पाकिस्तान की अखंडता को खतरा पैदा हो रहा है। वहां की सेना स्थिति पर नियंत्रण पाने में असमर्थ है, क्योंकि अफगानिस्तान की तालिबान सरकार को हक्कानी गुट समर्थन दे रहा है। तालिबान ने डूरंड रेखा को मानने से इन्कार कर दिया है। इसलिए वह पश्चिमी सीमा का समाधान करते हुए भारत के साथ शांति चाहता है।

एक अन्य कारण यह हो सकता कि पाकिस्तान ने बदलते वैश्विक रुख को भांप लिया हो। चीन का करीबी होने के कारण पश्चिम उसे संदेह की नजर से देखता है। पाकिस्तान यह जानता है कि वह चीन को छोड़ नहीं सकता, क्योंकि ज्यादातर कर्ज उसने चीन से ही लिया है। उसे यह भी पता है कि चीन को चुनौती देने के लिए पश्चिम को भारत की जरूरत है, इसलिए भारत का समर्थन पाने के लिए पश्चिम उसे छोड़ देगा। अभी भारत उभरता हुआ वैश्विक सितारा है। हर वैश्विक नेता भारत का सहयोग और समर्थन चाहता है। इसके अलावा, भारत की अर्थव्यवस्था पाकिस्तान से दस गुना ज्यादा है। पाकिस्तान को हाशिये पर रखने का सबसे अच्छा तरीका उसकी अनदेखी करना और पाक कब्जे वाली कश्मीर एवं गिलगिटबाल्टिस्तान को फिर से हासिल करने की धमकी देना है।

भारतीय राजनेता इन दिनों यही कर रहे हैं। भारत तो पाकिस्तान की अनदेखी कर सकता है, लेकिन पाकिस्तान भारत की अनदेखी नहीं कर सकता। शहबाज शरीफ द्वारा जम्मूकश्मीर में अनुच्छेद 370 की बहाली का जिक्र करना उसके रुख में बदलाव का संकेत है। अब तक पाकिस्तान इसी बात पर जोर देता रहा है कि अनुच्छेद 370 की बहाली के बाद ही बातचीत हो सकती है। यदि शहबाज अपने इरादे के प्रति गंभीर थे, तो उन्हें व्यापारिक समुदाय की सलाह मानकर भारत के साथ व्यापार शुरू करना चाहिए था और फिर से उच्चायुक्तों की नियुक्ति करनी चाहिए थी। भारतपाक व्यापार में काफी संभावनाएं हैं और इससे भारत की तुलना में पाकिस्तान को ही ज्यादा फायदा होगा। यदि पाकिस्तान गंभीर है, तो उसे केवल शब्दों में नहीं, बल्कि अपने कार्यों में ईमानदारी दिखानी होगी। तब तक भारत इंतजार करेगा और देखता रहेगा।

Addressing the inaugural session of Pakistan’s mineral summit in Islamabad last week, Shehbaz Sharif, Pakistan’s Prime Minister, stated, ‘(Pakistan is) prepared to talk to them (India), provided that the neighbour (India) is serious to talk (on) serious matters… because war is no more an option.’ He added, ‘It is equally important that our neighbour understands that we cannot become normal neighbours unless abnormalities are removed.’ This is the second time this year that Shehbaz has offered talks in a similar fashion. The first was in an interview to Dubai based news channel, Al Arabiya, in Jan this year.

          The Indian response was on predicted lines. The Indian spokesperson, Arindam Bagchi, stated, ‘an environment free of terror and hostility is imperative’ for any engagement between the two countries. India’s consistent stand on Pakistan has been that ‘talks and terrorism’ cannot go hand in hand. Shehbaz as also Bilawal Bhutto, in different sessions of the SCO (Shanghai Cooperation Organization), accused India of ‘weaponizing terrorism for diplomatic point scoring.’ India has raised cross-border terrorism in every global forum and bilateral meet.

          In his media briefing, the US Department of State spokesperson, Matthew Miller, was asked for his comments on Shehbaz’s statement. He responded, ‘we support direct dialogue between India and Pakistan on issues of concern. That has long been our position.’ This was construed by some Pakistanis that the US backs them, whereas, the US had only made it clear that it considers all Indo-Pak issues to be bilateral.

          The LOC remains silent with the ceasefire agreed in Feb 2021 holding. Infiltration attempts continue, though at a reduced level. The Union Minister of State for Home, Nityanand Rai, announced in Parliament, that there has been no successful infiltration into J and K till June end this year. Simultaneously, Pakistan’s attempts at narco-terrorism are proving partially successful. Drug addiction cases continue to rise in J and K, while numbers joining militancy reduce. Reports state that only 7 youth joined militant ranks this year, of which 5 have already been eliminated.

In desperation, Pakistan is attempting to raise the Khalistan bogey in India and abroad. It is trying to destabilize Punjab, while J and K stabilizes. Its drones have been dropping drugs and small arms in Punjab, while it backs the movement across the world. For India this is another red line.       

          Pakistan’s current government’s tenure concludes on 09 Aug and a caretaker PM will assume charge. The caretaker PM will not have powers to conduct any major global interactions. India also moves into the election mode with fresh elections due early next year. In such a scenario there are no possibilities for talks till both nations have their new governments.  

In such a scenario, the question being asked is why is the Pak PM repeatedly raising the subject. It could be an election gimmick, implying that the ruling Pak dispensation will seek votes, in the forthcoming elections, on the promise to resolve differences with India. An alternative view from Pakistan is that Shehbaz is setting the tone for any future Pak government. It could also be intended for the subject to be exploited by the Indian opposition accusing the BJP of not making any serious effort to resolve Indo-Pak ties.  

          It is true that one of the reasons for the offer for peace was due to Pakistan’s failing economic and security scenario. Currently, despite an IMF bailout, Pakistan is caught in a vicious circle of borrowing funds to repay previous loans. It is placing its national assets, including air and sea ports, on the market, to raise funds. The scenario is unlikely to change in the near future. A major benefit could flow from trade with India.

          Pakistan also faces a deteriorating security scenario. The TTP (Tehreek-e-Taliban Pakistan) and the Baloch freedom fighters alongside the ISKP (Islamic State–Khorasan Province) are active along Pakistan’s western borders. Daily attacks on Pak posts as also suicide bombings are threatening Pakistan’s integrity. The army is unable to bring the situation under control, mainly because of the support provided by the Haqqani leadership in Afghanistan’s Taliban led government. The Taliban have refused to accept the Durand Line. In reality, it is Pakistan which is facing a two and a half front threat. Hence, Pakistan would prefer peace with India, while it resolves its western borders.

          Another possible reason is that the Pak dispensation has accepted the changing global narrative. Pakistan is no longer a frontline state. It is viewed with suspicion by the west for being a close Chinese ally. It is aware it cannot dump China as it holds most of Pak’s loans. The west needs India to challenge China and hence would dump Pak to the wolves to gain Indian backing. Pakistan’s frustration was evident when Hina Rabbani, their deputy foreign minister stated, ‘India has decided to be the darling of the West, but at the same time, it is very belligerent to the countries within its region.’  

          Currently, India is the global rising star. Every global leader seeks collaboration and cooperation with India. India’s economy is ten times that of Pakistan, with 28 states/Union Territories richer than Pakistan. The best way to keep Pak on the leash is to ignore it, while continuously threatening to regain POK and Gilgit Baltistan. This is exactly what Indian politicians have been doing in the recent past. Hence, India can ignore Pak, while Pakistan cannot ignore India.    

          Shehbaz not mentioning reinstatement of article 370 is a change in approach. Thus far, Imran and the current PDM government had insisted that talks can only be held once the article is reinstated. If Shehbaz was serious in his intent, then he should have accepted the advice of the business community and recommenced trade with India as also re-appointed High Commissioners. India-Pak trade has high potential and would benefit Pak more than India.  

          The fact that the Pakistan leadership only talks but does not act implies it is waiting for India to blink first, which India will not do. If Pakistan is serious, it must display sincerity in its actions, not just in words. Till then, India will wait and watch

About the Author

Maj Gen Harsha Kakkar

Retired Major General Indian Army

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