The armed forces are visible, where are others Amar Ujala 08 May 2021

https://www.amarujala.com/columns/opinion/covid-19-armed-force-proves-to-be-an-savior

जब बाकी सब विफल हो जाते हैं, तो भारत के पास एक आखिरी रास्ता बचताहै-सशस्त्र बल, चाहे भूकंप हो, बाढ़ हो, ग्लेशियर का फटना हो, ट्रेन दुर्घटना हो या महामारी हो। नवीनतम रिपोर्ट में बताया गया है कि सेना की मेडिकल बटालियन को पूर्वोत्तर से बिहार में कोविड अस्पताल स्थापित करने के लिए एयरलिफ्ट किया गया है, क्योंकि वहां संक्रमण के मामले बढ़ रहे हैं। यह गतिविधि अन्य सशस्त्र बल चिकित्सा सेवाओं द्वारा चलाए जा रहे अस्पतालों के अतिरिक्त है, जिन्हें अन्य संगठनों ने स्थापित किया है। इससे राज्यों की चिकित्सा सुविधाओं में वृद्धि हुई है। वह भी तब, जब इन बलों को बड़ी संख्या में बीमार अपने मौजूदा और सेवानिवृत्त कर्मियों के लिए कैटरिंग की भी व्यवस्था करनी पड़ रही है। 

कुछ मामलों में सेना ने आम लोगों को चिकित्सा सहायता उपलब्ध कराने के लिए अपने अस्पतालों को भी आंशिक रूप से खोला है। इसके अलावा, दुनिया के विभिन्न हिस्सों से महामारी से लड़ने के लिए आवश्यक विशाल संसाधनों को लाने में वायु सेना और नौसेना को लगाया गया है। घरेलू स्तर पर वायु सेना और थल सेना संसाधनों को उन स्थानों पर पहुंचाती है, जहां जरूरत है। यह संभवतः अग्रिम मोर्चे पर तैनात सभी संगठनों में सर्वाधिक सक्रिय दिखाई दे रही है। चीन में उत्पन्न वायरस ने पूरे भारत में आतंक फैलाया है, जिसके परिणामस्वरूप अस्पताल के बिस्तर, जीवन रक्षक दवाइयों और सहायक प्रणालियों में कमी आई है। 

सरकारी और निजी अस्पताल भारी दबाव में हैं। क्षमता से अधिक मरीज भरे रहने के अलावा कई अस्पताल चिकित्सीय कर्मचारियों की कमी से जूझ रहे हैं, क्योंकि बड़ी संख्या में वे पीड़ित हैं। देश की चिकित्सा बिरादरी इस लड़ाई को बहादुरी से लड़ रही है। कई कमियों के बावजूद देश में एक भी अस्पताल बंद नहीं है। दुनिया भर से संकेत मिलने के बावजूद केंद्र और राज्य सरकारें देश को दूसरी लहर के लिए तैयार करने में विफल रहीं। खतरे का आकलन करने और राजनेताओं के सलाह देने के लिए जिम्मेदार नौकरशाही सोती रही, जबकि राजनीतिक पार्टियां चुनाव और धार्मिक आयोजनों को लेकर ज्यादा चिंतित थीं। पहली लहर के बाद सरकार ने समय से पहले जीत की घोषणा कर दी, जिसके चलते आम आदमी लापरवाह हो गया और निर्धारिेत प्रोटोकॉल की अनदेखी करने लगा। सरल शब्दों में कहें, तो यह राष्ट्रीय स्तर पर सामूहिक विफलता थी।

राज्य स्तरीय सुविधाओं की मदद करने के लिए केंद्र सरकार के संगठनों को लगाया गया, हालांकि वह भी सीमित स्तर पर। केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों ने कुछ चिकित्सा सुविधाएं खोलीं और उन्हें अपने चिकित्सा पेशेवरों की टीमों के जरिये संचालित किया। उनके अस्पताल दूरदराज के इलाकों में स्थानीय आबादी के लिए काम करते हैं। रेलवे ने अपने कोचों को उन शहरों में आइसोलेशन सेंटरों में बदल दिया, जहां संक्रमितों की संख्या बढ़ रही थी। इन्हें रेलवे से जुड़े डॉक्टरों द्वारा चलाया जाता था। मौजूदा अस्पतालों का बोझ कम करने के लिए रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) ने अहमदाबाद, वाराणसी, लखनऊ और दिल्ली में अस्थायी अस्पताल स्थापित किए। ढांचा खड़ा हो गया, फर्नीचर भी आ गए, लेकिन बड़ी जीवन रक्षक सुविधाएं वहां नहीं हैं। 

सरकारी संस्था होने के नाते, केंद्र से धन मिला, जबकि डीआरडीओ ने इसका श्रेय लिया। डीआरडीओ ने यह भी घोषणा की कि हर प्रतिष्ठान में पूर्ण अस्पताल होने के बावजूद, इन सुविधाओं को चलाने के लिए उसके पास कोई चिकित्सा संसाधन नहीं हैं। राज्य सरकारों ने केंद्र से चिकित्सीय सहायता की मांग की। सरकार ने इसे रक्षा मंत्रालय की ओर बढ़ा दिया। अंततः अत्यधिक तनाव झेल रहे सशस्त्र बल चिकित्सा बिरादरी को तैनात किया गया। गृह मंत्रालय के तहत अन्य केंद्रीय एजेंसियों का कम उपयोग किया गया।

यदि केवल अस्पताल बनाना ही डीआरडीओ का उद्देश्य था, तो उन्हें मौजूदा अस्पतालों के विस्तार या अस्पतालों के आसपास के क्षेत्र में निर्माण का काम सौंपा जाना चाहिए था। इस तरह की कार्रवाई से चिकित्सा कर्मचारी की बचत होती। सशस्त्र बल इन अतिरिक्त कर्मचारियों को मुख्यालय और प्रशिक्षण संस्थानों सहित अन्य जगहों से बाहर निकाल रहे हैं। रिपोर्टों के अनुसार, सशस्त्र बलों को योजना बनाने के स्तर पर कभी भरोसे में नहीं लिया गया, लेकिन कोई विकल्प नहीं होने के बहाने उसे काम पर लगा दिया जा रहा है। अन्य सरकारी एजेंसियों के संसाधनों की तैनाती के विकल्प मौजूद हैं, लेकिन उनकी अनदेखी की जा रही है। राष्ट्र सशस्त्र बलों पर भरोसा करता है और उनका आगमन विश्वास को दर्शाता है। राष्ट्रीय स्तर की आपदाओं और संकट से निपटने के लिए अन्य सरकारी एजेंसियां भी हैं, लेकिन जब इस महामारी ने देश को प्रभावित किया, तो वे गायब हैं। 

हालांकि  केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल और रेलवे को सीमित स्थानों पर देखा गया है, लेकिन सशस्त्र बलों की तुलना में राष्ट्रीय आपदा राहत बल (एनडीआरएफ) गायब है। एनडीआरएफ की स्थापना 2006 में आपदा प्रतिक्रिया संबंधी कर्तव्यों के लिए की गई थी। यह रासायनिक, जैविक, रेडियोलॉजिकल और परमाणु आपात स्थितियों से निपटने में काफी अनुभवी होने का दावा करता है। इसमें सलाहकारों का जमावड़ा भी है, जिसमें प्रत्येक क्षेत्र के विशेषज्ञ हैं, लेकिन यह मौजूदा लड़ाई से गायब है। सशस्त्र बलों के जवानों पर से दबाव कम करने के लिए इसके मेडिकल स्टाफ को अस्पतालों में तैनात किया जा सकता है, जबकि इसके तकनीकी कर्मचारी ऑक्सीजन प्लांट और अन्य आवश्यक उपकरण संचालित कर सकते हैं। अन्य कर्मियों को प्रशासनिक और सुरक्षा  कार्यों के लिए तैनात किया जा सकता है।

ऐसा लगता है कि सरकार के पास अब भी कोई कार्य-योजना नहीं है। यह तदर्थ तरीके से काम कर रही है और जहां भी यह फंस जाती है, सशस्त्र बलों का दोहन करती है। अन्य एजेंसियां, जो समान रूप से योगदान कर सकती हैं, गायब हैं। यही समय है, जब सरकार की सभी एजेंसियों को तैनात किया जाए, राष्ट्र के सभी संसाधनों का अधिकतम उपयोग किया जाए और सभी एजेंसियां आम जनता को इस संकट से उबारने के लिए एक साझा लक्ष्य के साथ एकजुट होकर काम करें। 

ENGLISH VERSION

The armed forces are visible, where are others (English version) Amar Ujala 08 May 2021

          India has a force of last resort, the armed forces, which rush in when all else fails, whether it be earthquakes, floods, glacier bursts, train accidents or pandemics. Latest reports state that army medical battalions were airlifted into Bihar, from the North East, to set up COVID hospitals as cases continue to rise. This movement is in addition to the armed forces medical services running hospitals established by other organizations, beefing medical support facilities of states, while catering for the deluge of patients amongst its own serving and veteran community.

In a few cases, the army has also opened part of its hospitals to enhance medical support to the public. In addition, the air force and the navy have been overstretched in lifting vast resources needed to battle the pandemic from different parts of the globe. Internally, the air force and the army have been transporting resources to where needed. It is possibly the most visible of all organizations on the frontlines.

The China originated virus has spread havoc across India, resulting in shortfalls in hospital beds, lifesaving medicines and support systems. State and private hospitals are under intense strain. Apart from being filled to capacity many face shortfalls in medical staff as large numbers are afflicted. The medical fraternity of the country has been fighting this battle valiantly. No hospital in the country has closed despite multiple shortfalls.

Governments, at the state and centre, failed to prepare the nation for the second wave, despite witnessing it in every part of the globe. The bureaucracy, responsible for assessment and advising politicians, slept, while political parties were more concerned about elections and religious events. An early declaration of victory by the government, post the first wave, led to the common man becoming careless and ignoring laid down protocols. Simplistically put, it was collective failure at the national level. The nation was completely unprepared when it was hit by the second wave. 

To back state facilities, central government organizations were roped in, though in a limited manner. The Central Armed Police Forces opened few medical facilities and ran them employing their own teams of medical professionals. Their hospitals in remote areas cater for local population. The railways converted coaches into isolation centres in cities where numbers of infected were on the increase. These were run by doctors affiliated to the railways.

          The DRDO, established temporary hospitals to back existing facilities in Ahmedabad, Varanasi, Lucknow and Delhi.  They created the structure and placed furniture. No major life saving stores were provisioned. Being a government entity, funds flowed from the centre, while the DRDO claimed credit. The DRDO also announced that it has no medical resources to run these facilities, despite possessing full-fledged hospitals in every establishment. The state government demanded medical support from the centre. The government pushed the Ministry of Defence (MoD). Ultimately, the overstretched armed forces medical fraternity is roped in. Other central government agencies under the MHA remain under-utilized.

If only establishing facilities was the intention of the DRDO, then they should have been tasked to expand existing hospitals or construct them in vicinity of hospitals. Such an action would have resulted in saving of medical staff. A few examples would justify this. Independent facilities like the Sardar Vallabh Bhai hospital near Delhi airport requires over 120 doctors, 50 nurses and far more para medical and support staff. The Lucknow and Varanasi facilities require over 60 doctors, in addition to related staff. If these were close to or part of existing hospitals the strength required would have been less and it would have been easier to manage.  

The armed forces are providing this additional staff by thinning out from elsewhere, including HQs and training institutions. As per reports, the armed forces were never taken on board at the planning stage but are being pushed on the pretext of there being no option. Options of employing resources of other government agencies exist but are being ignored.

The nation trusts the armed forces and their arrival is a display of confidence. There are other agencies created by the government solely for handling national level disasters and crisis but when this pandemic hits the country, they are missing. While CAPFs and railways have been seen in limited locations, as compared to the armed forces, the National Disaster Relief Force (NDRF) is missing.

The NDRF was created in 2006 for ‘disaster response related duties.’ It claims to have considerable experience in CBRN (chemical, biological, radiological and nuclear) emergencies. It also possesses a collection of advisors, each an expert in his field, but is missing from the battle. Is the nation facing anything, other than a biological disaster? Every NDRF battalion includes engineers, technicians, medical staff and paramedics, an ideal combination for running temporary medical facilities.  

Its medical staff can be attached to hospitals being established, to reduce pressure on armed forces personnel, while its technical staff can operate oxygen plants and other essential equipment. The others could be employed for administrative and security duties. But the NDRF, creating for managing disasters is missing. Its 12 battalions, each comprising of over 1000 personnel are sitting out the pandemic at a time when the nation needs expert support the maximum. 

It appears that the government still does not possess an intra-government plan of action. It is acting in an adhoc manner and wherever it is stuck, it seeks to exploit the one resource which will never back down, the armed forces. Other agencies, which can equally contribute remain missing. It is time a ‘whole of government’ approach is adopted, every single resource of the nation exploited to the maximum and all agencies work in unison towards a common goal of providing succour to the masses.

About the Author

Maj Gen Harsha Kakkar

Retired Major General Indian Army

4 thoughts on “The armed forces are visible, where are others Amar Ujala 08 May 2021

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      My take is that there is an emergency for which we were not prepared. Nor is there past precedent to work on. There lies the rub: Babus don’t know nor do they have the competence to act. Files they can push, and how!
      It is perfectly in order to use ALL resources at the nation’s call. Armed Forces will and must do all they can to get the nation out of this distress. What is bothering is, like you said, how about the NDRF and other agencies similarly placed to also get into the act.
      Apportionment of blame and accountability can wait right now.

    • Author gravatar

      Isn’t it ironic, that all emergency actions and powers that the GoI is taking/has invoked, are under the National Disaster Mgmt Act …and the NDRF is missing?! Shame on this fair-weather force!

      And, the much vaunted bureaucrats/technocrats are usually wanting in administration even in normal times; to expect them to coordinate different key departments and organisations in a national emergency situation …is asking for the moon!

      Excellent write-up, Harsha!

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