हर साल संयुक्त राष्ट्र महासभा का सितंबर का सत्र वैश्विक राजनीति का केंद्र बिंदु बन जाता है। सत्र के अंतराल में विभिन्न वैश्विक मंच मिलकर प्रस्ताव पारित करते हैं, जिनमें से ज्यादातर अर्थहीन होते हैं। राष्ट्रीय नेतागण संबोधन के अधिकार के तहत नकली और काल्पनिक झड़पों को आधार बनाकर अपने पड़ोसी देशों पर आरोप लगाते हैं और महासभा के मंच का दुरुपयोग करते हैं। कुछ नेता एक ही मुद्दे को सालोंसाल आधार बनाते हैं।
संयुक्त राष्ट्र का बाहरी हिस्सा विरोध प्रदर्शन करने वाले विभिन्न समूहों से भरा होता है। इस बार संयुक्त राष्ट्र महासभा के सत्र में यह सब तो खैर दिखा ही, कुछ दूसरे कारणों से भी यह सत्र उल्लेखनीय रहा। जैसे कि अफगानिस्तान की नई अंतरिम सरकार ने संयुक्त राष्ट्र महासभा के सत्र में बोलने की अनुमति मांगी, जिसे खारिज कर दिया गया। नई सरकार संयुक्त राष्ट्र में अपने मौजूदा स्थायी प्रतिनिधि को भी हटाना चाह रही थी, पर उसकी यह मांग भी खारिज कर दी गई।
इसी दौरान होने वाला सार्क विदेश मंत्रियों का सालाना सम्मेलन भी इस बार अंतिम समय में रद्द कर दिया गया, क्योंकि पाकिस्तान इसमें तालिबान की अंतरिम सरकार के प्रतिनिधि को भी शामिल करने का अनुरोध कर रहा था। पर सार्क के बाकी देशों ने सर्वसम्मति से इस सुझाव को खारिज कर दिया, क्योंकि इनमें से किसी ने भी उसे मान्यता नहीं दी है।
ऐसे ही, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया ने पनडुब्बी समझौते में से फ्रांस को जिस तरह बाहर कर दिया है, इस पर फ्रांस के प्रतिनिधि ने महासभा के मंच से नाराजगी जताई। इसके जवाब में उन्होंने फ्रांस-भारत और ऑस्ट्रेलिया की संयुक्त राष्ट्र महासभा के सत्र के दौरान होने वाली सालाना बैठक रद्द कर दी। उल्लेखनीय है कि जी-20 की बैठक में भी चीन के विदेश मंत्री ने अफगानिस्तान पर लगाए गए एकतरफा प्रतिबंध हटाने और आपातकालीन इस्तेमाल के लिए अफगानिस्तान के संचित कोष का नई सरकार द्वारा इस्तेमाल करने की अनुमति देने की मांग की थी। लेकिन इस मुद्दे पर चीन के रुख से दूसरे देश सहमत नहीं हैं।
भारतीय प्रधानमंत्री ने वाशिंगटन से अपनी अमेरिका यात्रा की शुरुआत की। इस दौरान उन्होंने विभिन्न कंपनियों के सीईओ के साथ बातचीत की, तो क्वाड के नेताओं और क्वाड देशों के शासनाध्यक्षों से बात की, तो अमेरिकी राष्ट्रपति और उप-राष्ट्रपति से भी उनका संवाद हुआ। इस दौरान एकाधिक अवसरों पर आतंकवाद के सहयोगी के रूप में पाकिस्तान की भूमिका सामने आई।
अमेरिकी प्रेस ने इस पर भी काफी लिखा कि अमेरिका को नरेंद्र मोदी से मानवाधिकार और हिंदू राष्ट्रवाद पर सख्त सवाल पूछने चाहिए। हालांकि भारत अमेरिका का प्रमुख साथी और मजबूत क्वाड सहयोगी है। क्वाड देशों के शासनाध्यक्षों की मुलाकात सबसे उल्लेखनीय रही, जिसकी मेजबानी जो बाइडन ने की। इसके साझा बयान में कहा गया कि क्वाड विभिन्न क्षेत्रों में आगे बढ़ रहा है, तथा निकट भविष्य में और शक्तिशाली बनकर उभरेगा।
जैसा कि अपेक्षित था, चीन ने इसके प्रतिकूल टिप्पणी की। उसका मानना है कि यह संगठन उसके खिलाफ है। जहां तक पाकिस्तान की बात है, तो अमेरिका की उपेक्षा को देखते हुए इमरान खान न्यूयॉर्क नहीं गए और महासभा की बैठक को वर्चुअली संबोधित किया। इमरान वहां जाते, तो अमेरिका में रह रहे अफगानियों और वैश्विक मानवाधिकार कार्यकर्ताओं द्वारा उनका तीखा विरोध किया जाता, क्योंकि वे जानते हैं कि अफगानिस्तान की मौजूदा अस्थिरता के लिए पाकिस्तान जिम्मेदार है।
चूंकि नरेंद्र मोदी ने वाशिंगटन में बाइडन समेत दुनिया के तमाम ताकतवर नेताओं और लोगों से मुलाकात की, ऐसे में, उनके प्रतिद्वंद्वी इमरान को अपनी उपेक्षा और भी कचोटती। हालांकि पाक विदेश मंत्री एसएम कुरैशी न्यूयॉर्क गए और कहा कि तालिबान सरकार ने दोहा समझौते का भले पालन न किया हो, पर विश्व समुदाय को उससे रिश्ता कायम करना चाहिए। उनका प्रस्ताव खारिज हो गया।
ऐसे में, अमेरिकी विदेश मंत्री ब्लिंकन से कुरैशी की मुलाकात ही पाकिस्तान के अखबारों के लिए उपलब्धि थी। पर उस मुलाकात के बाद दोनों तरफ के बयान में फर्क देखा गया। मुलाकात के बाद अपने ट्वीट में ब्लिंकन ने अफगानिस्तान का जिक्र किया, जबकि कुरैशी का कहना था कि ब्लिंकन से कश्मीर और अमेरिका के साथ पाकिस्तान के रिश्ते पर बात हुई! संयुक्त राष्ट्र महासभा में कुछ चीजें कभी नहीं बदलतीं।
जैसे, तुर्की के राष्ट्रपति एर्डोगन ने अपेक्षा के अनुरूप ही कश्मीर पर टिप्पणी की, जिसका जवाब हमारे विदेश मंत्री ने दिया। उइघुरों के मुद्दे पर खामोश ओआईसी ने अपने बयान में कश्मीर का जिक्र किया, जैसा कि वह हर बार करता है। यही एक टिप्पणी पाकिस्तान के पक्ष में गई। इमरान ने अपने भाषण में कश्मीर का जिक्र और तालिबान का समर्थन किया। नरेंद्र मोदी का संबोधन इससे अलग था। उन्होंने भारतीय लोकतांत्रिक मूल्यों और भारत के बढ़ते महत्व का जिक्र किया।
पाकिस्तान को आड़े हाथों लेते हुए उन्होंने उन देशों को निशाना बनाया, जो आतंकवाद को अपनी नीति बनाते हैं। उन्होंने चीन का जिक्र किए बगैर उसकी विस्तारवादी नीति और ईज ऑफ डुइंग बिजनेस रिपोर्ट बदलने के लिए संयुक्त राष्ट्र पर दबाव बनाने के फैसले की आलोचना की। मोदी और इमरान के भाषणों में फर्क साफ दिखाई पड़ा। इमरान ने जहां अपनी हर मुश्किल के लिए भारत को जिम्मेदार ठहराया, वहीं मोदी ने पाकिस्तान का नाम नहीं लिया।
इमरान ने काबुल की दमनकारी तालिबान सरकार को मान्यता देने की मांग की, जबकि मोदी के भाषण में अफगान महिलाओं और बच्चों के प्रति चिंता थी। इमरान के भाषण में अमेरिका, भारत और वैश्विक समुदाय पर आरोप थे, तो मोदी ने विकास, उम्मीद और कोविड से लड़ने की बात की। अपनी मुद्रा और देहभाषा में इमरान प्रतिगामी दिखे, तो मोदी भविष्यद्रष्टा।
India on the stage of world politics Amar Ujala 27 Sep 2021
The UN General Assembly (UNGA) session in September every year makes it the focal point of global politics. World leaders converge onto New York and Washington. Different global forums meet on the side lines of the UNGA session to pass resolutions, most of which are meaningless and do not even appear in local newspapers. National leaders accuse neighbours or other nations of fake and imagined disputes, exploiting the UNGA stage, leading to ripostes under the right to address. Some harp on the same topics year after year. The ground outside the UN is filled with different groups of protestors depending on who would be addressing the UNGA that day. Simultaneously, the press has a field day.
Apart from the above, there were specific incidents in this UNGA session. The new Afghanistan government sought permission to address the UNGA, which was rejected. Their demand to change their current permanent representative, due to take over by the Taliban, was also not accepted. The previous Afghan permanent representative would address the UNGA. The SAARC foreign minister’s meeting, held annually alongside the UNGA, was cancelled at the last minute due to Pakistan’s demand to include the interim Afghan government representative on the Afghan table, rejected by all other countries as none have recognized it. Only indicated that SAARC as an organization has outlived its utility and needs to be closed.
The French continued displaying their anger at being pushed out from the submarine deal by the US and Australia. They projected this by cancelling the France-India-Australia trilateral meeting generally scheduled on the side-lines of the UNGA meet. The G 20 met as per norm, where the Chinese foreign minister pushed for lifting unilateral sanctions against Afghanistan and using Afghan’s reserves as instruments of pressure. There were disagreements between China and the rest.
The Indian Prime Minister commenced his US visit from Washington. His interactions with CEO’s, independent meetings with leaders of QUAD, interaction with the US President and Vice President as also a face-to-face meeting of QUAD heads of state were highlights. Pakistan’s role as a supporter of terrorism came up on multiple occasions. Simultaneously, there were write-ups in the US press that the US must question Modi on his Human Rights and Hindu Nationalism. There is no doubt that India remains a major ally for the US and a strong QUAD ally.
The most talked about event was the in-person meeting of QUAD heads of state, hosted by Biden. The joint statement projected that QUAD is moving forward in multiple fields and would grow in power with passage of time. It also displayed unity of purpose of all members. It was, as expected, adversely commented upon by China, which believes it is directed against it.
The interesting scenario was that of Pakistan. Imran Khan, ignored by the US, decided to address the UNGA virtually. He could not be seen visiting New York and having no other engagements, especially as he remains amongst the few national heads of state ignored by Biden. His visit could have also led to protests by the Afghan diaspora supported by global Human Rights groups criticizing Pak’s direct involvement in Afghanistan. It hurt even more when Imran’s arch-rival, Indian PM Narendra Modi, was meeting all high and mighty in Washington, including Biden. Hence, how could Imran arrive and leave unnoticed.
Pakistan’s foreign minister, SM Qureshi, arrived in New York with the intention of begging the global community to engage with the Taliban government in Kabul, without them fulfilling their Doha promises. His words were ignored. Qureshi met US Secretary of State, Blinken in New York, a visit best described in the headlines of Pak’s newspaper Dawn as, ‘Foreign Minister Qureshi finally met US Secretary of State.’
As usual, statements post the meeting varied between the two sides. Blinken only referred to Afghanistan in his post meeting tweet, while Qureshi mentioned beyond it including Kashmir and future ties with the US. Evidently, the message US conveyed was that it views Pakistan through the prisms of terrorism support and Afghanistan. As expected, Qureshi gave few interviews where he harped on Kashmir and on global support to Afghanistan.
Some things never change when it comes to the UNGA. President Erdogan of Turkey, commented, as expected, on Kashmir leading to India’s foreign minister, S Jaishankar stating, ‘Important that relevant UN Security Council resolutions in respect of Cyprus are adhered to by all.’ The OIC mentioned Kashmir in its statement, a comment made every year, ignored and barely commented upon, as this body, which maintains silence on Uighurs, has lost relevance. For Pakistan, this comment is essential and a face saver, having been ignored by all others.
As is the norm, Imran Khan raised Kashmir in his address, something every Pak leader has done for decades. And, as usual, it was rebutted by a junior member of the Indian delegation. Further, like before, neither will it ever come for discussion, nor will the world be concerned about it. It was done to satisfy his domestic audience and it has. Imran also backed the Taliban government in Kabul and desired world support. As per Pak traditions, Imran used fake news inputs aimed at belittling the US when he wrongly quoted Ronald Regan as also sought to accuse India of atrocities.
Modi’s address was in sharp contrast. He emphasized on the strength of Indian democratic values and the growing importance of India. He mentioned that every 6th human is an Indian and when India grows, the world grows and when India reforms the world transforms. Hitting out at Pakistan, PM Modi commented on countries employing terrorism as an instrument of state policy as also exploiting Afghanistan for terrorism. Hinting at China, Modi spoke on expansionism and exploiting the UN for altering the ease of doing business report.
There was a striking contrast between Modi and Imran in their addresses. Imran blamed India for its ills, while Modi never mentioned Pakistan. Imran spoke of recognizing the repressive Taliban regime, while Modi displayed concern for Afghan women and children. Imran’s speech was full of accusations, India, US and the global community. Modi, on the contrary, spoke of hope, support to fight COVID and development. Imran was regressive, while Modi was forward looking. No wonder the two leaders are viewed vastly different on the global stage.
With major events in the UNGA complete, New York would now be back to normalcy for another year.